________________
अनेकान्त 61/1-2-3-4
अर्थात् जो गृहस्थों से मिश्रित न हो, जिसमें चोर आदि का आना-जाना न हो और जो विशुद्ध संचरण के योग्य हो ऐसी वसतिका में दो या तीन या बहुत सी आर्यिकायें एक साथ रहती हैं। आचारवृत्ति में कहा है कि जो अपनी पत्नी और परिग्रह में आसक्त हैं उन गृहस्थों से मिश्र वसतिका नहीं होनी चाहिए। जहाँ पर असंयतजनों का संपर्क नहीं रहता है, जहाँ पर असज्जन और तिर्यचों आदि का रहना नहीं है अथवा जहाँ सत्पुरुषों की सन्निकटता नहीं है अथवा जहां असंज्ञियों - अज्ञानियों का आना-जाना नहीं है अर्थात् जो बाधा रहित प्रदेश है। विशुद्ध संचार अर्थात् जो बाल, वृद्ध और रुग्ण आर्यिकाओं के रहने योग्य है और जो शास्त्रों के स्वाध्याय के लिए योग्य है, वह स्थान । इस प्रकार, मुनियों की वसतिका की निकटता से रहित, विशुद्ध संचरण युक्त वसतिका में आर्यिकायें दो या तीन अथवा तीस या चालीस पर्यन्त भी एक साथ रहती हैं । आर्यिकायें परस्पर में एक दूसरे की अनुकूलता रखती हुयीं, एक दूसरे की रक्षा के अभिप्राय को धारण करती हुयीं रोष, बैर, माया से रहित; लज्जा, मर्यादा और क्रियाओं से संयुक्त; अध्ययन, मनन, श्रवण, उपदेश, कथन, तपश्चरण, विनय, संयम और अनुप्रेक्षाओं में तत्पर रहती हुयीं; ज्ञानाभ्यास- उपयोग तथा शुभोपयोग से संयुक्त, निर्विकार वस्त्र और वेष को धारण करती हुयीं पसीना और मैल से लिप्त काय को धारण करती हुयीं, संस्कार-श्रृंगार से रहित; धर्म, कुल, यश और दीक्षा के योग्य निर्दोष आचरण करती हुयीं अपनी वसतिका में निवास करती हैं
अण्णोष्णणुकूलाओ अण्णोष्णहिरक्खणाभिजुत्ताओ । गयरोसवेरमाया सलज्जमज्जादकिरियाओ ।।
अज्झयणे परियट्ठे सवणे कहणे तहाणुपेहाए । तवविणयसंजमेसु य अविरहिदुपओगजोगजुत्ताओ ।
39
-
(- मूलाचार, गाथा 188-189)
3. 2 आर्यिकाओं की आहारचर्या
आर्यिकाओं को आहारचर्या के लिए अकेले जाने की स्वीकृति नहीं है । मूलाचार में कहा है कि आर्यिकायें तीन, पांच, अथवा सात की संख्या में स्थविरा ( वृद्धा ) आर्यिका के साथ मिलकर उनका अनुगमन करती हुई तथा परस्पर एक दूसरे के रक्षण (सँभाल) का भाव रखती हुई ईर्यासमिति पूर्वक आहारार्थ निकलती हैं