SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 61 1-2-3-4 35 तपस्या का अहोभाग्य! आचार्य, शान्तिसागर जी महाराज में जन्म से ही अतिमानवीय संकल्प शक्ति, मानसिक साहस एवं शारीरिक बल था, उसका वह जीवन के जिस क्षेत्र में भी उपयोग करते, सफलता के उच्चतम शिखर तक अनायास ही पहुंच सकते थे। धनकुबेर, राजनीतिक नेता, उद्योगपति, योद्धा, शासक, जो भी वह चाहते बन सकते थे। जो लोग आज इन विभिन्न क्षेत्रों में अग्रिम श्रेणी पर पहुंचे हुए हैं, उनके व्यक्तित्वों की विशेषताओं के साथ आचार्यश्री के व्यक्तित्व की तुलना करने पर इस कथन की सार्थकता स्पष्ट सिद्ध हो जायेगी। यह तपस्या का अहोभाग्य है कि आचार्य महाराज ने जीवन के उपरोक्त अन्य क्षेत्रों को तुच्छ समझ कर त्याग दिया और विरक्ति का मार्ग अपनाया। नैतिक एवं आध्यात्मिक तन्द्रा के इस युग में भी भारत ने ऐसे एक यतीन्द्र को जन्म दिया, यह इस देश की आन्तरिक महानता का द्योतक है। ऐसे तपोधन को अपना कहने की योग्यता पाने पर दिगम्बर जैन समाज निःसन्देह गर्व कर सकता मे. वर्द्धमान ड्रग्स 1617, दरीवा कलां, दिल्ली-110006 दृरभाष : (कार्या.) 23288437 (नि.) 23288428
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy