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अनेकान्त 61 1-2-3-4
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तपस्या का अहोभाग्य!
आचार्य, शान्तिसागर जी महाराज में जन्म से ही अतिमानवीय संकल्प शक्ति, मानसिक साहस एवं शारीरिक बल था, उसका वह जीवन के जिस क्षेत्र में भी उपयोग करते, सफलता के उच्चतम शिखर तक अनायास ही पहुंच सकते थे। धनकुबेर, राजनीतिक नेता, उद्योगपति, योद्धा, शासक, जो भी वह चाहते बन सकते थे। जो लोग आज इन विभिन्न क्षेत्रों में अग्रिम श्रेणी पर पहुंचे हुए हैं, उनके व्यक्तित्वों की विशेषताओं के साथ आचार्यश्री के व्यक्तित्व की तुलना करने पर इस कथन की सार्थकता स्पष्ट सिद्ध हो जायेगी।
यह तपस्या का अहोभाग्य है कि आचार्य महाराज ने जीवन के उपरोक्त अन्य क्षेत्रों को तुच्छ समझ कर त्याग दिया और विरक्ति का मार्ग अपनाया।
नैतिक एवं आध्यात्मिक तन्द्रा के इस युग में भी भारत ने ऐसे एक यतीन्द्र को जन्म दिया, यह इस देश की आन्तरिक महानता का द्योतक है। ऐसे तपोधन को अपना कहने की योग्यता पाने पर दिगम्बर जैन समाज निःसन्देह गर्व कर सकता
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