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अनेकान्त 61 1-2-3-4
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वर्मा का भी अद्भुत तमाशा बहत बार देखा। हम लोग महाराज के साथ-साथ रहते थे। वर्षा आगे रहती थी, पीछे रहती थी; किन्तु महाराज के साथ में पानी ने कभी कष्ट नहीं दिया। उनकी हर प्रकार की पुण्याई के दर्शन किए थे।" ___ आचार्यश्री का गजनीति से कोई संबंध नहीं था। ममाचार पत्रों में जो समाचार आदि छपा करने थे उमे व न पढ़ते थे, और न ही सुनते थे। प्रकाश प्रेरित अनुभूतियों द्वारा उन्हें देश काल का ज्ञान हो जाता था। सन् 1910 में जव द्वितीय महायुद्ध छिड़ा, आचार्यश्री के कानों में उसके समाचार पहुंचे। महाराजश्री ने सहज ही पूछा, यह युद्ध आरंभ किमने किया’ उनको बनाया गया कि युद्ध की घोपणा सर्वप्रथम जर्मनी ने की है। महागज का पवित्र मन बोल उठा - "इस युद्ध में जर्मनी निश्चय ही पर्गाजत होगा।' कुछ काल तक जर्मनी की विजय अवश्यंभाविनी माननेवाले लोगों को भी यह दिखा कि आचार्यश्री का अंतःकरण मत्य वात को पहले ही मृचित कर चुका था। __इसी प्रकार गांधीजी की प्रतिष्ठा देश भर में व्याप्त थी। उस समय महागज बोले - 'गाधीजी अच् आदमी हैं। उनसे अधिक पुण्यवान जवाहरलाल हैं। वह गजा बनने लायक हैं। गांधी जी ने केवल मनुष्य की दया को ही ठीक माना है।" मैंने पूछा कि “महागज गजनीति की बातों में ना आप दूर रहते हैं, फिर आपने जवाहरलाल जी के बारे में उक्त बातें कमे कही थीं।"
महाराज ने कहा 'हमाग हृदय जमा बोलता है, वमा हमने कह दिया। हम न गाधी का जानतं. न जवाहर की पहचानते।"
अतिमानवीय संकल्पशक्ति के तेजोपुंज
आचार्य शान्तिसागर हीरक जयन्ती विशपांक के सम्पादक तरूण पत्रकार एवं लेखक श्री सोमसुन्दरम जी आचार्यश्री के दर्शन एवं साक्षात्कार के लिए दही गांव गए थे। आचार्यश्री के सान्निध्य में उन्होंने तीन दिन विताए। इन तीन दिनों में आचार्यश्री के संबंध में आपने जो देखा, सुना, विचार किया तथा चर्चा की उसका सार संक्षेप इस प्रकार है - ___आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के अन्यतम श्रावक शिप्य श्री तलकचंद शाह वकील ने श्री मोममुन्दरम् का परिचय कगते हा कहा - ये आपसे कुछ प्रश्न करक समाधान कराने के लिए आए हैं। तो महागज न मधुर मुस्कराहट के साथ कहा – “एक नहीं, दो नहीं, हजार प्रश्न कर लो। मन का उत्तर दूंगा।