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अनेकान्त 61/1-2-3-4
दीवान श्री लट्ठे की कार्यकुशलता
गुरुदेव के चरणों को प्रणाम कर लठे साहब महाराज कोल्हापुर के महल में पहुंचे। महाराजा साहव उस समय विश्राम कर रहे थे, फिर भी दीवान का आगमन सुनते ही वाहर आ गए। दीवान साहव ने कहा- “गुरु महागज बाल-विवाह प्रतिबंधक कानून' बनाने को कह रहे हैं।" राजा ने कहा-“तुम कानून वनाओ। मैं उस पर मही कर दूंगा।" तुरन्त लट्ट ने कानून का मसौदा तैयार किया। कोल्हापुर राज्य का सरकारी विशेष गजट निकाला गया, जिसमें कानून का मसौदा छपा था। प्रातःकाल उचित समय पर उस मसौदे पर राजा के हस्ताक्षर हो गए। वह कानून बन गया। दोपहर के पश्चात् सरकारी घुड़सवार सुमज्जित हो एक कागज लेकर वहां पहुंचा, जहां आचार्य शांतिसागर महागज विराजमान थे।
अलौकिक सिद्धियां
आचार्य पायमागर जी अपने गुरु की विशिष्टताओं से मन्त्रमुग्ध थे। आचार्यश्री को आप एक महान् मनोवैज्ञानिक एवं योगी मानते थे। वह अपनी दिव्य दृष्टि से मनुष्य में स्थित प्रसुप्त मामर्थ्य को देख लिया करते थे। जीवन की उलझनों को सुलझाने की उनमें अपूर्व कला थी। उनकी मुद्रा पर वैगग्य का भाव सदा अंकित रहता था। वे साम्यवाद के भण्डार रहे हैं। उनमें अपने भक्तों पर तोप और शत्रु पर गेप नहीं पाया जाता था। समय-समय पर अज्ञानता से ग्रस्त व्यक्तियों ने उन पर एवं संघ के त्यागियों पर सशस्त्र आक्रमण किया। पुलिस के अधिकारियों द्वारा अपराधियों को पकड़ने पर उन्होंने सदैव शान्ति-सिंधु की भांति आततायियों पर अनुकम्पा की और उन्हें सदमार्ग पर लगा दिया।
सघति सेठ गेंदनमलजी तथा उनके परिवार का आचार्यश्री के साथ महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध रहा है। गुरुचरणों की सेवा का चामत्कारिक प्रसाद, अभ्युदय तथा समृद्धि के रूप में उस परिवार ने अनुभव भी किया है। सेठ गंदनमल जी ने कहा था-“महागज का पुण्य बहुत जोरदार रहा है। हम महाराज के माथ हजारों मील फिरे हैं, कभी भी उपद्रव नहीं हुआ है। हम बागड़ प्रान्त में गत भर गाड़ियों में चलते थे, फिर भी कोई विपत्ति नहीं आई। बागड़ प्रान्त के ग्रामीण ऐसे भयंकर रहते हैं कि दस रुपये के लिए भी प्राण लेने में उनको जरा भी हिचकिचाहट या संकोच नहीं होता था। ऐसे अनेक भीषण स्थानों पर हम गए हैं कि जहां से सुख शांतिपूर्वक जाना असम्भव था; किन्तु आचार्य महाराज के पुण्य-प्रताप से कभी भी कप्ट नहीं देखा।