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अनेकान्त 61/ 1-2-3-4
आत्मा का उद्धार होता है। जब तक पापवृत्तियों से जीव को दूर कर पुण्य की ओर उसका मन नहीं खींचा जायेगा तब तक उसका कैसे उद्धार होगा ?
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बाल विवाह प्रतिबन्धक कानून के प्रेरक
'आध्यात्मिक ज्योति' के यशस्वी लेखक धर्मदिवाकर सुमेरुचन्द जी पूज्य आचार्यश्री के निकटस्थ रहे हैं । आचार्यश्री के प्रेरक व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने एक घटना का उल्लेख किया है। प्रस्तुत घटना आचार्यश्री की असाधारण वुद्धिमत्ता, वाग्वैभव एवं कार्यकुशलता का परिचय कराती है । घटना इस प्रकार है
भारत सरकार के द्वारा बाल-विवाह कानून निर्माण के बहुत समय पहले ही आचार्य महाराज की दृष्टि उस ओर गई थी। उनके ही प्रताप से कोल्हापुर राज्य में सर्वप्रथम वालविवाह प्रतिबंधक कानून बना था । इसकी मनोरंजक कथा इस प्रकार है। कोल्हापुर के दीवान श्री लट्ठे दिगम्बर जैन भाई थे। लट्ठे की बुद्धिमत्ता की प्रतिष्ठा महाराष्ट्र प्रान्त में व्याप्त थी । कोल्हापुर महाराज उनकी बात को बहुत मानते थे। एक बार कोल्हापुर में शाहुपुरी के मंदिर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हो रही थी। वहां आचार्यश्री विराजमान थे। दीवान बहादुर श्री लटं प्रतिदिन सायंकाल के समय में महाराज के दर्शनार्थ आया करते थे। एक दिन लठ्ठे महाशय ने आकर आचार्यश्री के चरणों को प्रणाम किया। महाराज ने आशीर्वाद देते हुए कहा- ' - "तुमने पूर्व में पुण्य किया है, जिससे तुम इस राज्य के दीवान बने हो और दूसरे राज्यां में तुम्हारी बात का मान है । मेरा तुमसे कोई काम नहीं है। एक बात है, जिसके द्वारा तुम लोगों का कल्याण कर सकते हो। कारण, कोल्हापुर के राजा तुम्हारी बात को नहीं टालते ।" दीवान वहादुर लट्टे ने कहा- "महाराज! मेरे योग्य संवा सूचित करने की प्रार्थना है ।" महाराज "छोटे-छोटे बच्चों की शादी की अनीति चल रही है । अवोध वालक-बालिकाओं का विवाह हो जाता है। लड़के के मरने पर वालिका विधवा कहलाने लगती है । उस बालिका का भाग्य फूट जाता है । इससे तुम बाल-विवाह प्रतिबन्धक कानून बनाओ। इससे तुम्हारा जन्म सार्थक हो जायगा । इस काम में तनिक भी देर नहीं हो।" कानून के श्रेष्ठ पंडित दीवान लट्ठे की आत्मा आचार्य महाराज की बात सुनकर अत्यन्त हर्षित हुई । मन ही मन उन्होंने महाराज की उज्ज्वल सूझ की प्रशंसा की। गुरुदेव को उन्होंने यह अभिवचन दिया कि आपकी इच्छानुसार शीघ्र ही कार्य करने का प्रयत्न करूंगा ।