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________________ अनेकान्त 61 1-2-3-4 उस समय हमने देखा, कुछ बन्दरों ने जबरदस्ती उसके बच्चे को छीनकर नदी में डाल दिया था । बन्दर को पानी में तैरना नहीं आता है । यह हमने प्रत्यक्ष देखा है । इतना प्रेम मृत बालक पर बंदरिया का था।” 24 दूसरी घटना महाराज ने बताई - "एक समय एक हौज में पानी भरा जा रहा था, एक बंदरिया अपने बच्चे को कन्धे पर रखकर उस हौज में थी । जैसे-जैसे पानी बढ़ता जाता था, वह गर्दन तक पानी आने के पूर्व बच्चे को कंधे पर रखकर वचाती रही; किन्तु जब जल की मात्रा बढ़ गई और स्वयं बंदरिया डूबने लगी, तो उसने बच्चे को पैरों के नीचे दबाया और उस पर खड़ी हो गई, जिससे वह स्वयं न इवने पावे । इतना ममत्व स्वयं के जीवन पर होता है। उस शरीर के प्रति मोह का भाव उपवास में छूटता है। यह क्या कम लाभ है?" इन दोनों कथाओं से आप स्वयं यह अनुभव कर सकते हैं कि आचार्यश्री के पास प्रत्यक्ष अनुभूत घटनाओं का पिटारा था। आप अपनी पदयात्राओं में पशु-पक्षियों के दुःख अपने चर्म चक्षुओं से देखते थे ओर उनके दर्द को अनुभव कर समय-समय पर श्रावक समाज को उपयोगी मन्त्रणा दिया करते थे । भारतवर्ष की वन सम्पदा एवं पशु-पक्षी सम्पदा के केन्द्र मथुरा में आपका सन् 1930 में चातुर्मास हुआ था । आपके संघ के यहां पधारने से पूर्व सूखा पड़ रहा था और लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। लेकिन संघ के पदार्पण से अच्छी वर्षा हुई और मथुरावासियों ने शान्ति का अनुभव किया। मथुरा से खुरजा और अनेक शहरों में विहार करता हुआ संघ पौष सुदी 10 तदनुसार मंगलवार 30 दिसम्बर 1930 को भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली में पधारा । मार्ग में शीत से पीड़ित पशु-पक्षियों की पीड़ा को आपने स्वयं अनुभूत किया। एक धर्माचार्य के रूप में समाज का मार्गदर्शन करते हुए आचार्यश्री ने कहा - "भाई, जीवों की दया पालने से जीव सुखी होता है। दूसरे जीवों को मारकर खाना बड़ा पाप है। इससे ही जीव दुःखी होता है। महाराज के शब्दों का बड़ा प्रभाव होता था । तपश्चर्या से वाणी का प्रभाव बहुत अधिक हो जाता है । पशु-पक्षियों के कष्ट का उल्लेख करते हुए आपकी वाणी द्रवित हो जाती थी । आचार्यश्री के उपेदशामृत से प्रेरित होकर ही दिल्ली की जैन समाज ने विश्वविख्यात लाल किले के सामने श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर जी में परिन्दों का अस्पताल खोलने का संकल्प लिया । प्रसंगवश इस अवसर पर यह उल्लेख करना अत्यावश्यक है कि पक्षियों का महाराज के कुटुम्ब से जन्मजात अनुराग रहा है । दिवाकर जी के शब्दों में आपके
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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