________________
अनेकान्त 61 1-2-3-4
19
परिणामस्वरूप राज्य में फाल्गुन शुक्ला 8 और 11 को जीव हिंसाबंदी की घोषणा महाराज ने अपने राज्य में करा दी।
यहां से विहार कर संघ धरियाबाद पहुंचा। राज्य की ओर से स्वागत किया गया। यहां के नरेश श्री रावजी खुमानसिंह जी बहादुर ने प्रत्येक कृष्णा 8 और शुक्ला 11 का कोई शिकार न खेल सकंगा - ऐसा आदेश जारी किया और स्वयं आजन्म शिकार खेलने का त्याग किया। तथा दशहरे पर होने वाली हिंसा सदा के लिए बंद कर दी। रनिवास में आचार्यश्री के उपदेश से रावजी की माताजी एवं धर्मपत्नी ने पर्व के दिनों में मांस खाने का त्याग किया। और स्थानीय नदी के गजघाट पर मछली मारना बन्द करने का शिलालेख लगवा दिया। सहस्रों भीलों ने मद्य मांस का त्याग किया। फिर खमेग नरवीग, पारसोला सावला, जांबूड़ा करावली, गीगला, कुरावड़ आदि होता हुआ संघ आपाढ़ सुदी । को उदयपुर पहुंचा।
आचार्यश्री का पशु-पक्षी प्रेम
करणामूर्ति आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज का पशु-पक्षी जगत के लिए मदन से ही करुणा भाव रहा है। निर्यच जाति के जीव यथा - पशु, पक्षी, सर्प, चींटिया आदि भी आपकं निवेग्भाव, वैचारिक सादगी एवं वात्सल्य भाव से अभिभृत होकर उनके प्रति नतमस्तक हो जाती थी। भोज ग्राम में आचार्यश्री का पशु-पक्षी प्रेम घर-घर में चर्चा का विषय बना हुआ था। आचार्यश्री का गुण-संकीर्तन करते हा उनकं निकट के खेत में मजदूरी का काम करने वाले 80 वर्षीय मगठा किसान श्री गुण ज्याति दमाले ने पत्रकारों को बताया था - "हम जिम खेत में काम करते थे उससे लगा हुआ महाराज का खेन था। हम उनको पाटिल कहते थे। हमाग उनसे निकट परिचय था। उनकी वोली बड़ी प्यारी लगती थी। मैं गरीव हूं ओर व श्रीमान है, इस प्रकार का अहंकार उनमें नहीं था। हमारे खेत में अनाज खाने को सेकड़ों-हजागें पक्षी आ जान थे, में उनको उड़ाता था तो वे उनके खेत में वेट जाते थे। वे उन पक्षियों को उड़ाने नहीं थे। पक्षियों के झंड के झुंड उनके
खेत में अनाज खाया करते थे।" ____ एक दिन मैंने कहा कि पाटिल हम अपने खेत कं मव पक्षियों को तुम्हारे खेत में भेजेंगे। वे वाले कि तुम भेजो, वे हमारे खेत का सव अनाज खा लेंग, तो भी कमी नहीं होगी। इसके बाद उन्होंने पक्षियों के पीने का पानी रखने की व्यवस्था खेत में करा दी। पक्षी मस्त होकर अनाज खाते थे और जी भरकर पानी