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अनेकान्त 61/ 1-2-3-4
4. प्रश्न - नरक क्या है? उत्तर- पराधीनता का नाम नरक है ।
सप्तम निबंध 'जैन कॉलोनी और मेरा विचार पत्र' शीर्षक से है, जिसमें इन्होंने सेवा की भावना से अच्छे नैतिक संस्कारों के विकास हेतु जैन कॉलोनी बसाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, ताकि जैन जीवन-शैली के जीते-जागते उदाहरण एकत्रित होकर तदनुसार विकास करें ।
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अष्टम निबंध 'समाज में साहित्यिक सद्रुचि का अभाव' शीर्षक से संकलित है, जिसमें जैन समाज में पूजा-प्रतिष्ठाओं, मंदिर-मूर्ति निर्माण और अन्यान्य प्रदर्शनों के प्रति अतिशय जागरूकता, और नष्ट हो रहे शास्त्रों, साहित्य के नवनिर्माण, प्रकाशन- उद्धार आदि के प्रति अरुचि को देखकर मुख्तार जी ने अपनी वेदना प्रकट की और जैन साहित्य के उद्धार, उन्नति और प्रचार-प्रसार के लिए अनेक सुझाव प्रस्तुत किये हैं ।
नवम 'समयसार का अध्ययन और प्रवचन' शीर्षक का निबन्ध है । यह मई 1953 में अनेकान्त में प्रकाशित हुआ था । इसमें आपने समयसार की विना गहराई समझे, इसके प्रवचन करना और अपने प्रवचन छपवा लेने आदि की प्रवृत्ति की आलोचना की है 1
दशम भवाभिनन्दी मुनि और मुनि निंदा' नामक निबंध में लेखक ने संसार के कार्यों आदि के प्रति रुचि रखने वाले तथा इनका अभिनन्दन करने वाले मुनियों की निन्दा करने वालों को 'मुनि निन्दक' करके लांछित करने वाले लोगों पर टिप्पणी की है। वस्तुतः मुनिधर्म का मुख्य उद्देश्य आत्मकल्याण करना है, न कि सांसारिक कार्यो में रुचि और उत्साह । मुख्तारजी ने अपने इस विस्तृत निबंध में सच्चे मुनियों के स्वरूप और समाज की जिम्मेदारी आदि का अच्छा विश्लेषण किया है। समाज की मति आज भी इसी तरह की बनी हुई है ।
ग्यारहवें 'न्यायोचित विचारों का अभिनंदन' निबंध में लेखक ने 'श्रमण' ( अंक 4 ) में प्रकाशित मुनि न्यायविजयजी की 'नम्र विज्ञप्ति' को पढ़कर उसकी प्रशंसा करके जैन धर्म और संस्कृति के गौरव के प्रसार के उपायों की चर्चा की है ।
बारहवें और अन्तिम 'एक अनुभव' निबंध में आपने जैनसंदेश पत्रिका में श्री रामजी भाई माणिकचंद दोशी, सोनगढ़ के प्रकाशित निबंध 'प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और आलोचना' की समालोचना की है 1