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अनेकान्त 61/1-2-3-4
___ इस तरह 'युगवीर निबंधावली' में संकलित ये प्रकीर्णक लेख जैनधर्म, संस्कृति, साहित्य और समाज के स्वरूप को उच्चतम वनाये रखने में पथप्रदर्शन तो करते ही हैं, प्रेरणा और दीपस्तम्भ का कार्य भी करते हैं। अतः इनका अध्ययन-मनन वर्तमान सन्दर्भो में आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है। अच्छा तो यह होगा कि मात्र इन्हीं निबंधों को अलग से पुस्तकाकार प्रकाशित करके पाठकों को उपलब्ध कराया जाए।
आचार्य एवं अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग
सं. सं. वि. वि., वाराणसी