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________________ अनेकान्त 61/1-2-3-4 149 में से उन्नीस पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं - 1. भरत, 2. कुशावर्त, 3. इलावर्त, 4. ब्रह्मावर्त, 5. मलय, 6. केतु, 7. भद्रसेन, 8. इन्द्रस्पृक्, 9. विदर्भ, 10. कीकक, 11. कवि, 12. हरि, 13. अन्तरिक्ष, 14. प्रबुद्ध, 15. पिप्पलायन, 16. आविर्होत्र, 17. द्रुमिल, 18. चमस और 19. करभाजन। भागवतपुराण' के अनुसार उपर्युक्त उन्नीस पुत्र भागवत परम्परानुसारी योग परम्परा में दीक्षित हो गए थे जबकि जयन्ती के 81 पुत्रों ने यज्ञशील ब्राह्मण धर्म को अपनाया था।' 1.2 जैन तथा वैदिक परम्परा में ऋषभपुत्र भरत का वृत्तान्त वैदिक परम्परा से प्राप्त उपर्युक्त विवरणों की जैन पुराणों से तुलना करें तो दिगम्बर परम्परा के अनुसार भगवान् ऋषभदेव की पत्नियों का नाम यशस्वती और सुनन्दा था।" श्वेताम्बर परम्परा यशस्वती के स्थान पर सुमंगला नाम बताती है।" जबकि 'भागवतपुराण' के अनुसार ऋषभ की एक ही पत्नी जयन्ती से सौ पुत्रों का जन्म हुआ था। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् ऋषभदेव के सौ पुत्र तथा सुन्दरी और ब्राह्मी नाम की दो पुत्रियां थीं। इनमें से भरत और बाहुबली नामक दो पुत्र विशेष रूप से विख्यात हुए थे। ___ वैदिक पुराणों में ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली का कोई भी उल्लेख नहीं मिलता जबकि जैन पुराणों के अनुसार भरत बाहुबली का युद्धप्रसङ्ग एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना प्रतीत होती है।" पौराणिक जैन परम्परा के अनुसार भरत का चक्रवर्ती बनना था परन्तु उसकं सौतेले भाई बाहुबली को भरत का आधिपत्य स्वीकार नहीं था। इसलिए दोनों भाइयों के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। मुष्टियुद्ध में बाहुबली ने जब भरत पर प्रहार करने के लिए अपनी मुष्टि ऊपर उठाई तो इन्द्र के परामर्श पर अथवा विवेकज्ञान हो जाने के कारण बाहुबली को ऐसी आत्मग्लानि हुई कि उसने उस मुष्टि का प्रहार अपने ऊपर ही कर दिया जिससे बाहुबली का आत्मघात तो नहीं हुआ किन्तु अभिनानघात अवश्य हो गया। अन्ततोगत्वा बाहुबली ने जैन धर्म की दीक्षा धारण की और भरत चक्रवर्ती को निष्कण्टक राज्य प्राप्त हुआ। ___ उधर वैदिक परम्परा के अनुसार ऋषभपुत्र भरत भागवत धर्म के परम अनुयायी हैं। 'विष्णुपुराण' के अनुसार गजा भरत अहिंसा आदि नियम- व्रतों का पालन करते हुए भगवान् वासुदेव में ही चित्त लगाकर शालग्राम क्षेत्र में रहा करते थे। एक दिन उन्होंने नदी के तट पर हरिणी के गर्भपात की दु:खद घटना को देखा। हरिणी की मृत्यु हो जाने पर भरत ने ही हरिणी के शिशु का पालन पोषण किया। इस प्रकार भरत ममता के बन्धन में ऐसे जकड़ गए कि अगले जन्म में उन्हें पहले मृग, फिर ब्राह्मण परिवार में 'जड़ भरत' के रूप में जन्म लेना पड़ा।"
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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