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________________ जैन परम्परा और अयोध्या - डॉ० मोहन चन्द तिवारी भारतीय मभ्यता और संस्कृति के निर्माण में वैदिक और श्रमण दोनों परम्पराओं का महनीय योगदान रहा है। ऐतिहासिक दृष्टि से इन दोनों परम्पराओं का साम्प्रदायिक रूप से विभाजन किस युग में हुआ, इसका निर्णय करना एक स्वतन्त्र शोध का विषय है। परन्तु जहां तक अयोध्या के प्राचीन इतिहास का प्रश्न है, जैन आगमों में अयोध्या के पर्यायवाची नाम 'विनीता' और 'इक्ष्वाकुभूमि' (इक्खागु भृमि) भी दिए गए हैं। दोनों परम्पराएं यह मानती हैं कि इक्ष्वाकुवंश के राजाओं ने सर्वप्रथम यहां राज्य किया था। वैदिक परम्परा के अनुसार मनु वैवस्वत के पुत्र 'इक्ष्वाकु' से सूर्यवंशी ऐक्ष्वाक वंशावली का प्रारम्भ हुआ तो जैन परम्परा के अनुसार आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव ने, जो इक्ष्वाक भी कहलाते थे, मर्वप्रथम 'इक्ष्वाकभूमि' (अयोध्या) में राज्य किया।' इनसे पूर्व न राजा था और न राज्य। भगवान् ऋषभदेव ने ही सर्वप्रथम समाज को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से असि मास कृषि की शिक्षा दी तथा शिल्प आदि विविध कलाओं का उपदेश दिया। जैन पुराणों के अनुमार ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को अर्थशास्त्र व नृत्यशास्त्र, वृषभसेन को गान्धर्व विद्या, अनन्त विजय को चित्रकला, वास्तुकला और आयुर्वेद तथा बाहुबली को धनुर्वेद, अश्वशास्त्र, गजशास्त्र आदि की शिक्षा दी। उन्होंने अपनी पुत्रियों को लिपिशास्त्र, अंकगणित आदि विद्याओं का उपदेश दिया। 1. जैन परम्परा : ऐतिहासिक पर्यवेक्षण जैन धर्म के प्रसिद्ध आचार्य, मुनि सुशील कुमार जी के अनुसार भगवान् महावीर से पूर्व जैनधर्म का इतिहास 'आदियुग' के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस युग का प्रारम्भ आदि तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव से हुआ था जो मानव सभ्यता के * लेखक की हाल में प्रकाशित पुस्तक 'अप्टाचक्रा अयोध्या. इतिहास और परम्पग' (उत्तगयण प्रकाशन, दिल्ली, 2006) के अध्याय 9 पर आधारित।
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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