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________________ अनेकान्त 60/1-2 93 यहां पर इस बात पर भी ध्यान रखने की जरूरत है कि जब तक ये दोनों पद एक वाक्य के अवयव बने रहेंगे तब तक ही नयपद कहे जावेंगे और यदि इनको एक दूसरे पद से अलग कर दिया जाय तो उस हालत में ये प्रमाण रूप तो होंगे ही नहीं क्योंकि ऊपर कहे अनुसार पद प्रमाण रूप नहीं होता है, लेकिन उस स्वतन्त्र हालत में ये दोनों पद नय रूप भी नहीं कहे जावेंगे। कारण कि, अर्थ की अनिश्चितता के सबब ये अर्थ के एक अंशका भी उस हालत में प्रतिपादन नहीं कर सकते हैं। ___ दूसरा उदाहरण महावाक्य का दिया जा सकता है; जैसे स्वामी नौकर को आदेश देता है-'लोटा ले जाओ और पानी लाओं" यहां पर विवक्षित अर्थ दो वाक्यों से प्रकट होता है इसलिये दोनों वाक्यों का समुदाय रूप महावाक्य प्रमाणवाक्य कहा जायेगा और दोनों वाक्य उसके अवयव होने के कारण विवक्षित अर्थ के एक-एक अंश का प्रतिपादन करते हैं इसलिये नय वाक्य कहलावेंगे। यहां पर भी वह बात ध्यान देने लायक है कि जब तक ये दोनों वाक्य एक महावाक्य के अवयव हैं तब तक तो वे नयवाक्य रहेंगे और यदि इन दोनों वाक्यों को एक दूसरे वाक्य से अलग कर दिया जाय तो उस हालत में ये प्रमाण वाक्य रूप हो जावेंगे क्योंकि वाक्य स्वतंत्र रूप से भी प्रयोगार्ह होता है जैसा कि इस उदाहरण में जो वाक्य महावाक्य का अवयव होने के कारण नय वाक्य रूप से दिखलाया गया है वही पहिले उदाहरण में स्वतंत्र वाक्य होने के कारण प्रमाण वाक्य रूप से दिखलाया गया है। ___एक और उदाहरण महावाक्य का देखिये-एक विद्वान किसी एक विषय का प्रतिपादक एक ग्रन्थ लिखता है और उस विषय के भिन्न-भिन्न दश अंगो के प्रतिपादक दश अध्याय या विभाग उस ग्रन्थ के कर देता है। यहाँ पर समूचा ग्रंथ तो प्रमाणवाक्य माना जायेगा क्योंकि वह विवक्षित विषय का प्रतिपादक है और उसके अंगभूत दशों अध्यायों को नयवाक्य कोटि में लिया जायगा; क्योंकि वे विवक्षित विषय के एक-एक अंश का प्रतिपादन करते हैं। यहां पर भी जब तक ये दश
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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