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________________ 42 अनेकान्त 60/1-2 ___ आचार्य हेमचन्द्र ने चूलिका पैशाची, आर्ष (अर्ध मागधी) और अपभ्रंश इन तीनों भेदों को मिलाकर 7 प्रकार की प्राकृतों का अनुशासन किया है। प्राकृतसर्वस्वकार मार्कण्डेय ने प्रथमतः भाषा के चार भेद किए है और फिर उनके अवान्तर भेदों को बतलाया है। भाषा :- महाराष्ट्री, शौरसैनी, प्राच्या, अवन्ती और मागधी। विभाषा :- शाकारी, चाण्डाली, शाबरी, अभीरिकी और शाकी अपभ्रंश के भेदों की संख्या बतलाई गई हैं वहीं पैशाची, कैकयी, शौरसेनी और पाञ्चाली- प्राकृत रूपों को माना है।28 इसी प्रकार भरत मुनि ने मागधी, अवन्तिजा, प्राच्या, शौरसैनी, अधमागधी, वालीका और (दाक्षिणात्य) महाराष्ट्री सात प्राकृतों को उल्लेख नाट्यशास्त्र में किया है।29 __ आर्य भाषा विकास में इन प्राकृत भाषाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि इन प्राकृत भाषाओं से समस्त अपभ्रंशों का जन्म हुआ और यह अपभ्रंश भाषाएं ही आधुनिक समस्त भारतीय भाषाओं की जननी मानी जाती है। भाषा विज्ञान एवं भाषा शास्त्र में डा. कपिल देव द्विवेदी ने आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास को समझाते हुए लिखा है कि- “आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास मध्यकालीन अपभ्रंश भाषाओं से हुआ। प्राचीन पांच अपभ्रंशों का विकास हुआ। इन पांच अपभ्रंशों के साथ ही ब्राचड एवं खस दो अपभ्रंशों को और भी लिया जाता है। ब्राचड का उल्लेख मार्कण्डेय ने किया है जबकि खस एक पहाडी (उत्तरी) भाग की भाषा थी- इस प्रकार इन सात अपभ्रंशों से पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी एवं गुजराती तथा महाराष्ट्री अपभ्रंश से मराठी, मागधी अपभ्रंश से बिहारी बंगाली उडिया, असमी, अर्धमागधी से पूर्वी-हिन्दी और पैशाची-ब्राचड़ खस से क्रमशः सिन्धी, पंजाबी एवं पहाडी भाषाओं का विकास माना जाता है।30"
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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