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अनेकान्त 60/1-2
में आज पूरी मानवता झुलस रही है । क्या ईश्वर हमें वह बुद्धि देगा जिसके बल पर आज का मनुष्य अहिंसा को उसके सही अर्थों में पहिचाने और उसे अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेकर संसार के प्राणी मात्र को अभय का आश्वासन दे सके ?
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वर्तमान में हमारे सामने ऐसा विश्वास करने के सबल कारण उपस्थित हैं कि अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धान्त आज जितने प्रासंगिक हैं उतने हमारे पूर्वजों के युग में कभी नहीं रहे।
शान्ति सदन, कम्पनी बाग,
सतना म.प्र. 485001
श्रुतं सुविहितं वेदो द्वादशांगमकल्मषम् । हिंसोपदेशि यद्वाक्यं न वेदोऽसौ कृतान्तवाक् ।। पुराणं धर्मशास्त्रं च तत्स्याद् वधनिषेधि यत् । वधोपदेशी यत्तत्तु ज्ञेयं धूर्तप्रणेतृकम् ।।
आदिपुराण, 88 / 22-23 जिसके बारह अंग हैं, जो निर्दोष है और जिसमें श्रेष्ठ आचरणों का विधान है ऐसा शास्त्र ही वेद कहलाता है। जो हिंसा का उपदेश देने वाला वाक्य है, उसे तो यमराज का वाक्य ही समझना चाहिए । पुराण और धर्मशास्त्र भी वही हो सकता है, जो हिंसा का निषेध करने वाला है। इसके विपरीत जो हिंसा का उपदेश देते हैं, उन्होंने धूर्तो का बनाया हुआ समझना चाहिए ।
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