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________________ अनेकान्त 60/1-2 27 नहीं हैं। दूसरी यह कि वे हमें मिल जाती हैं।' There are two tragedies in life. One is not to get your heart's desire. The other is to get it. -George Bernard Shaw बात खोने की हो या पाने की इससे विशेष अन्तर नहीं पड़ता। दोनों की परिस्थितियों में मनुष्य के मन में संक्लेश ही उपजते हैं। उन्हीं संक्लेशों की पीड़ा उसे भोगना पड़ती है। वह जितना सम्पत्तिशाली होता जाता है, उसकी पीड़ा उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। __ मनुष्य प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है परन्तु उसके साथ एक अभिशाप भी लगा है। सृष्टि के समस्त प्राणी जिस रूप में जन्मते हैं, मरने तक उसी रूप में बने रहते हैं, पर मनुष्य के साथ ऐसा नहीं है। नारी की कोख से जन्म लेकर भी उसका जीवन भर मनुष्य बने रहना निश्चित नहीं है। मनुष्य यदि अधर्म और पाप के मार्ग पर कदम बढ़ा ले तो इसी चोले में रहते हुए उसे दानव या पशु बनते देर नहीं लगती। दूसरी ओर यदि वह सम्यक् पुरुषार्थ करके अपनी मनुष्यता को सुरक्षित बनाये रख सके तो उसके लिये नर से नारायण बनने की राह पर चलने की सम्भावना बन जाती है। यदि मनुष्य को मनुष्यता का गौरव लेकर जीना है तो उसे जीवन भर एक साधना करनी पड़ेगी, उस साधना का नाम है 'अहिंसा'। हिंसक मनुष्य का आजीवन मनुष्य बने रहना निश्चित नहीं होता। हिंसक जीवन-पद्धति अपना लेने पर मनुष्य के पतन की ही अधिक सम्भावना बन जाती है। आज दुनिया में आतंकवाद, लूटमार और अराजकता का जो नंगा नाच हो रहा है उसका मूल कारण यही है कि कुछ अविवेकी जनों ने संसार को अपने आधीन करने की अमर्यादित आकॉक्षा अपने मन में उत्पन्न कर ली है और उसकी पूर्ति के लिये अपरिमित हिंसा का रास्ता अपना लिया है। उनके भीतर सुलगती वासना और हिंसा की ज्वालाओं
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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