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________________ अनेकान्त 60/4 एकभक्त ये अट्ठाईस मूलगुण जिनेन्द्रदेव ने कहे हैं।' अन्य सभी श्रमणचर्या विषयक ग्रन्थों में ये 28 ही मूलगुण कहे गये हैं। दिगम्बर परम्परा में इस विषय में कोई वैमत्य नही है। श्री वसुनन्दी ने 'मूलगुण उत्तरगुणाधारभूता' कहकर मुलगूणों को उत्तरगुणों का आधारभूत कहा है। भगवती अराधना आदि उत्तरगुण हैं। उनके कारण होने से व्रतों में मूलगुण का व्यपदेश होता है। पाँच महाव्रत हिंसाविरति, सत्य, अदत्तपरिवर्जन, ब्रह्मचर्य एवं संगविमुक्ति ये पाँच महाव्रत कहे गये है। हिंसाविरति अहिंसा का पर्यायवाची है। काय, इन्द्रिय, गुणस्थान, मार्गणा, कुल, आयु और योनि-इनमें सभी जीवों को जानकर स्थान आदि में हिंसा का त्याग करना अहिंसा महाव्रत है। रागादि के कारण असत्य बोलने का त्याग, परतापकारी सत्य वचनों का भी त्याग तथा सूत्र एवं अर्थ के कथन में अयथार्थ वचनों का त्याग करना सत्य महाव्रत है। अदत्तपरिवर्जन अचौर्य या अस्तेय का नामान्तर है। ग्राम आदि में गिरी हुई, भूली हुई जो भी छोटी या बड़ी वस्तु है उसे तथा परसंग्रहीत द्रव्य का ग्रहण न करना अदत्तपरिवर्जन महाव्रत है। स्त्रियों को और उनके चित्र को माता, पुत्री एवं बहिन के समान देखकर स्त्री कथा आदि से निवृत्त होना त्रैलोक्यपूजित ब्रह्मचर्य महाव्रत है। जीव सम्बद्ध, जीव-असम्बद्ध एवं जीव से उत्पन्न त्रिविध परिग्रह का यथा शक्ति त्याग करना और इतर परिग्रह में निर्ममत्व होना असंग या अपरिग्रह नामक महाव्रत है। पाँच समिति सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति का नाम समिति है। प्राणियों की पीड़ा का परिहार करने के लिए सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करना समिति है। ईर्या, भाषा, एषणा, निक्षेपादान, मलमूत्रादि का प्रतिष्ठापन ये पाँच प्रकार की
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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