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________________ अनेकान्त 60/4 समितियाँ हैं। प्रयोजन के निमित्त चार हाथ आगे जमीन देखने वाले साधु के द्वारा दिवस में प्रासुक मार्ग से जीवों का परिहार करते हुए गमन करना ईर्या समिति है। चुगली, हँसी, कठोरता, परनिन्दा, आत्मप्रशंसा और विकथा आदि को छोड़कर स्वपरहितकारी वचन बोलना भाषा समिति है। छ्यालिस दोषों से रहित, शुद्ध, कारणवश, नवकोटिविशुद्ध और शीतोष्ण आदि में समान भाव से भोजन ग्रहण करना एषणा समिति है। ज्ञानोपकरण, संयमोपकरण, शौचोपकरण अथवा अन्य उपकरण को प्रयत्नपूर्वक ग्रहण करना एवं रखना आदाननिक्षेप समिति है। एकान्त, जीवजन्तुरहित, दूरस्थित, मर्यादित, विस्तीर्ण और विरोधरहित स्थान में मल-मूत्र आदि का त्याग करना प्रतिष्ठापना समिति है। पाँच इन्द्रियनिरोध ____ इन्द्रियनिरोध व्रत का विवेचन करते हुए मूलाचार में कहा गया है कि मुनि को चाहिए कि वह चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा एवं स्पर्शन इन पाँच इन्द्रियों को अपने विषयों से हमेशा रोके। सचेतन और अचेतन पदार्थों के क्रिया, आकार एवं वर्ण के भेदों में राग-द्वेष रूप संग का त्याग मुनि का चक्षुनिरोध है। षड्ज आदि जीव से उत्पन्न शब्द तथा वीणा आदि अजीव से उत्पन्न शब्द रागादि के निमित्त हैं। इनका नही करना कर्णेन्द्रिय निरोध है। जीव एवं अजीव स्वरूप सुखदुःख रूप प्राकृतिक तथा परनिमित्तक गंध में राग-द्वेष नही करना, मुनिराज का घ्राणनिरोध है। चतुर्विघ अशन, पंचरसयुक्त, प्रासुक, निर्दोष, रुचिकर अथवा अरुचिकर आहार में लम्पटता का नही होना जिह्वा इन्द्रिय निरोध है। जीव एवं अजीव से उत्पन्न हुए कठोर, कोमल आदि अष्टविध सुख-दुःख रूप स्पर्श में मोह रागादि नही करना स्पर्शनेन्द्रिय निरोध है।' ___मनुस्मृति में कहा गया है कि विद्वान् को चाहिए कि आकर्षित करने वाले विषयों में विचरण करने वाली इन्द्रियों को संयत रखने का प्रयत्न
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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