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________________ 62 अनेकान्त 60/3 ___13. आचार्य पद्मनन्दि-8 (1280-1330 ई.) ने श्रावकाचार सारोद्धार में जिन पूजन का विधान प्रोषधोपवास के दिन केवल आधे श्लोक में किया (श्लोक 313)। एक अन्य आचार्य पद्मनन्दि जी ने श्रावकाचार में जिनविम्ब, जिनालय बनवाकर नित्य ही स्तवन पूजन कर पुण्योपार्जन का विधान किया है (श्लोक 22-23)। ऐसा ही विधान उपासक संस्कार में पद्मनंदी नाम के आचार्य ने किया है (श्लोक 34-36)। किसी ने भी पंचामृत अभिषेक का उल्लेख नहीं किया। 14. पं. राजमल्ल जी ने लाटी संहिता के दूसरे सर्ग के 163-164 श्लोकों और पंचम सर्ग के 170-177 श्लोकों में पूजन का विधान किया है। दोनों स्थलों पर जल या पंचामृत अभिषेक का कोई उल्लेख नहीं किया। 15. माथुर संघ के आचार्य देवसेन (ई. 893-943) ने प्राकृत भाव संग्रह में देवपूजन का महत्व दर्शाकर जिनदेव के समक्ष धर्मध्यान करने और अपने को इन्द्र तथा जिन बिम्ब को साक्षात जिनेन्द्र देव मानकर जल, घी, दूध और दही से भरे कलशों से स्तवन कर पूजन का विधान किया है (गा. 7-93)। इसी प्रकार पं. वामदेव ने संस्कृत भाव संग्रह में घर पर ही पंचामृत अभिषेक और पूजन का विधान किया है (श्लोक 28 से 58)। ___16. सावय धम्म दोहा, श्री नेमिदत्त के धर्मोपदेश पीयूषवर्ती श्रावकाचार एवं भव्य धर्मोपदेश उपासकाध्ययन में जिनदेव ने घी, दूध आदि पंचामृत अभिषेक का विधान किया है। ___17. गुणभूषणश्रावकाचार, व्रतसारश्रावकाचार, व्रतोद्योतन, श्रावकाचार, पुरुषार्थानुशासनगत श्रावकाचार, रयणसार, तत्त्वार्थ सूत्र, चारित्र पाहुड़ आदि में जलाभिषेक या पंचामृत अभिषेक का कोई विधान नहीं है। 18. संहिता सूरी पं. नाथूलाल जी ने 'बीस पंथ और तेरह पंथ चर्चा' (समन्वय वाणी-अगस्त 02 11) में उल्लेख किया है कि नये सवस्त्र
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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