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________________ अनेकान्त 60/3 9. आचार्य अमितगति (ई. 993-1021) ने अपने श्रावकाचार में द्रव्य पूजा एवं भाव पूजा का स्वरूप और जिन पूजा का महात्म्य फल का वर्णन किया है। जिन स्नान एवं जिनोत्सव करने वाले को लक्ष्मी मिलती है (श्लोक 10)। अभिषेक या पंचामृत अभिषेक का कोई निर्देश नहीं किया। ___10. आचार्य वसुनंदि (ई. 1043-1053) ने अपने श्रावकाचार में प्रोपध प्रतिमा के वर्णन में द्रव्य और भाव पूजन (गाथा 207) तथा श्रावक के कर्तव्य बता कर पूजन का विस्तृत वर्णन किया। स्थापना पूजन में नवीन प्रतिमा का निर्माण एवं शास्त्रीय विधि से प्रतिष्ठा स्नपना करने का विधान किया है (गा. 424)। तीर्थकरों के गर्भ-जन्मादि कल्याणकों की 'काल पूजन' के दिन इक्षुरस, घी, दही, गंध, और जल से भरे कलशों से जिनाभिषेक का वर्णन किया है (गा. 453-454)। 11. पंडित प्रवर आशाधर जी (ई. 1173-12-43) ने सागार धर्मामृत के दूसरे अध्याय में पूजा के नित्यमह, सर्वतोभद्र, कल्पद्रुम और अष्टानिक भेद बताकर स्तवन आदि का उपदेश दिया। इस स्थल पर पंचामृत अभिषेक का कोई उल्लेख नहीं है (20 24-31) इससे ध्वनित होता है कि उस समय पंचामृत अभिषेक सार्वजनिक जिन मंदिर में प्रचलित नहीं था। प. आशाधर जी ने अध्याय 6 में मध्याह्न (दोपहर) की पूजा में 'प्रतिष्ठासारोद्धार' प्रतिष्ठा पाट का श्लोक उदधृत किया जिसमे अभिषेक की प्रतिज्ञा सहित पंचामृत अभिषेक की विधि और अप्ट द्रव्य से पूजन का विधान किया है (सा. ध. 6-22)। प्रचलित परम्परानुसार यह काल-पूजा का अंग है। ___12. आचार्य सकलकीर्ति (ई. 1433-1473) ने प्रश्नोत्तर श्रावकाचार के बीस वें अध्याय में पूजन का विस्तृत वर्णन करते हुए पंचामृत अभिषेक का कोई वर्णन नहीं किया, जबकि वे स्वयं प्रतिष्ठा कराते थे। श्लोक 196 में यह घोपित किया कि जो उत्तम भाव में स्वच्छ जल से जिनदेव के अंग का प्रक्षालन करते हैं, उस धर्म से उनका महापाप मल क्षय हो जाता है।
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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