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________________ 60 अनेकान्त 60/3 के पक्ष में आचार्य जिनसेन को प्रमाण स्वरूप मानने वाले विद्वान मनीषियों को महापुराण में पंचामृत अभिषेक की अविद्यमानता का निष्कर्प भी उदारता पूर्वक ग्रहण करना चाहिये। स्पष्ट है कि ईसा की 1-10 वीं शताब्दी तक जलाभिषेक की परम्परा रही होगी। 5. स्वामी कार्तिकेय ने कार्तिकेयानुप्रेक्षा की धर्मानुप्रेक्षा में गाथा 373 से 376 तक प्रोषध प्रतिमा का स्वरूप बताया है। आपने प्रोषध की समाप्ति पर सामायिक वन्दना, पूजन-विधान आदि कर तीन प्रकार के पात्रों को आहार दान देकर भोजन करने का उल्लेख किया है। अभिपंक आदि का कोई उल्लेख नहीं किया। स्वामी कार्तिकेय का समय ई. की दशमी शताब्दी है। ____b. आचार्य श्री अमृतचन्द्र (ई. 962-1015) ने पुरुपार्थ सिद्धयुपाय आचार ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में जलाभिषेक या पंचामृत अभिषेक का कोई उल्लेख नही है। प्रभावना अंग में 'दानतपोजिनपूजा' (श्लोक नं. 30) वाक्य में केवल जिन पूजा का उल्लेख है। प्रोषधोपवास के दिन प्रासुक द्रव्य से जिन पूजा का विधान किया है (श्लोक 15)। __7. सोमदेव ने यशस्तिलकगत उपासकाध्ययन में पूजन और अभिपेक का विस्तृत वर्णन किया है। आपका समय ई. 943-968 है। आपने सिंहासन को सुमेरू पर्वत मान कर जलाभिषेक कराया, पश्चात दाख, खजूर, नारियल, आंवला, केला, आम तथा सुपारी के रसो से अभिषेक कराया है, तत्पश्चात घी, दूध, दही, इलायची और लौंग के चूर्ण से जिन बिम्ब की उपासना का विधान किया है। (श्लोक-503, 507 से 511)। जिनशासन में सोमदेव शिथिलाचारी साधू माने जाते हैं। उन्होंने सर्वप्रथम वैदिक धर्म में प्रचलित पूजन-अभिषेक का अनुकरण किया है। यह वह समय था जब भट्टारकीय धार्मिक क्रियाकांड तंत्र-मंत्र एवं शिथिलाचार ऐहिक लाभ हेतु प्रारम्भ हो गया था। ___8. चामुण्डराय (11वीं शतो. पूर्वा.) ने चारित्रसार में श्रावकों के व्रती एव छह आर्य कर्मों के वर्णन मे पूजन के महापुराणों की चारों प्रकारों की स्वरूप स्नपन अभिषेक करने का निर्देश मात्र किया है।
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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