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अनेकान्त 60/3
मानवी (दैवी ), तिर्यञ्च और उनके प्रतिरूप समस्त स्त्रियों को रात्रि अथवा दिन में कभी भी नहीं सेवन करता है वह ब्रह्मचारी है। 25
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जो ब्रह्म में चरण करता है वह ब्रह्मचारी है । ब्रह्म के अनेक अर्थ हैं- चारित्र, आत्मा, ज्ञान आदि । 26 अर्थात् निश्चय से तो आत्मा में रमण करने वाला ही ब्रह्मचारी है और व्यवहार में जो सब स्त्रियों के सेवन का त्यागी है। वह ब्रह्मचारी है। इस प्रतिमा से पूर्व वह अपनी विवाहिता पत्नि का सेवन संतानोत्पत्ति के लिए अर्थात् काम पुरुषार्थ के लिए कर सकता था, परन्तु इस प्रतिमा में विवाहिता पत्नी के साथ भी मन वचन काय से अब्रह्म का त्याग होता है । गृह में स्थित होकर भी जो ब्रह्मचर्य का निरतिचार पालन करता है, उसकी प्रशंसा सर्वत्र होती है । गुणभद्राचार्य ने तो निर्दोष ब्रह्मचर्य पालन करने वाले ग्रहस्थ को नमस्कार किया है।
ब्रह्मचर्य प्रतिमा की यह महिमा वास्तव में ब्रह्मचर्य साधना की दुर्लभता का द्योतक है। जिसने कुशील रूपी पाश को तोड़ दिया है। जो युवतीजन के वचन वाणों से अभेद्य है, वास्तव में वह ही शूरवीर है । 27
8. आरम्भ त्याग प्रतिमा
पहले की सात प्रतिमाओं, संयम में पूर्णनिष्ठ जो श्रावक प्राणियों की हिंसा का कारण होने से खेती, नौकरी, व्यापार आदि आरम्भों को मनवचन - काय से न तो स्वयं करता है, और न दूसरों से कराता है वह आरम्भ विरत है 1 28
इस प्रतिमा से पूर्व खर कर्मों से आजीविका का निषेध हो चुका था, यहाॅ अल्प हिंसा वाले आरम्भ का भी कृत कारित से नहीं करता हुआ स्वयं को प्राणिघात से विरत करता है। रोजगार धन्धे के कामों को आरम्भ कहते हैं क्योंकि उनसे जीवनघात होता है । किन्तु दान-पूजा आदि को आरम्भ नहीं कहते हैं क्योंकि ये प्राणिघात के कारण नहीं हैं, प्राणियों को पीड़ा से बचाकर करने से ही दान पूजा सम्भव होती है
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