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________________ अनेकान्त 60/3 सचित्त विरत श्रावकों की दो विशेषताएँ आश्चर्य पैदा करने वाली हैं- एक उनका जिनागम के प्रामाण्य पर विश्वास और दूसरा उनका जितेन्द्रियपना। जिस वनस्पति में जन्तु दृष्टिगोचर नहीं होते, उसको भी न खाना उनकी दूसरी विशेषता का समर्थन करता है। 6. रात्रि भक्त प्रतिमा जो पूर्वोक्त पाँच प्रतिमाओं के आचार में पूरी तरह से परिपक्व होकर स्त्रियों से वैराग्य के निमित्त में एकाग्रमन होता हुआ मन-वचन-काय और कृत कारित अनुमोदना से दिन में स्त्री का सेवन नहीं करता, वह रात्रि भक्त व्रत होता है।22. यह कहा जा सकता है कि दिन में स्त्री सेवन तो विरले ही मनुष्य करते हैं। इसमें क्या विशेषता हुई। किन्तु जो दिन में केवल काय से ही सेवन नहीं करते वे भी मन से, वचन से और उनकी कृत कारित अनुमोदना से सेवन करते हैं उसी का त्याग छठी प्रतिमा में होता है। वसुनन्दी श्रावकाचार में भी यही वर्णन है।23 परन्तु आ.समन्तभद्र ने छठी प्रतिमा की परिभाषा करते हुए चारों प्रकार के आहार का रात्रि में त्याग कहा है। द्वितीय प्रतिमा वाला रात्रि में कदाचित् पानी, औषध आदि ले सकता था। परन्तु यहाँ पानी भी नहीं लेता है। रात्रि भक्त शब्द का अर्थ दोनों प्रकार से किया जा सकता है। भक्त का अर्थ स्त्री सेवन भी होता है। जिसे भाषा में भोगना कहते हैं और भोजन भी होता है। इस ग्रन्थ के मत से जो रात्रि में स्त्री सेवन का व्रत लेता है वह रात्रि भक्त व्रत है और रत्नकरण्डक के अनसार जो रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करता है वह रात्रिभक्त व्रत है।24 7. ब्रह्मचर्य प्रतिमा पहले छह प्रतिमाओं मे कहे गये और क्रम से बढ़ते हुए सयम के अभ्यास से मन को वश में कर लेने वाला जो श्रावक मन-वचन-काय से
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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