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________________ अनेकान्त 60/3 3. कृषिकर्म ____ “कृषिभूकर्षणे प्रोक्ताः “अर्थात् खेतों को जोतकर व बोकर आजीविका पैदा करना कृषिकर्म कहलाता है। ऋषभदेव के उपदेश से जब यह स्पष्ट हो गया, कि जमीन साफ करके उसमें अनाज बोकर तथा फसल की रक्षा करने से अन्त में खाद्यान्न की प्राप्ति होगी, तब ही भोजन की समस्या हल होगी। अतः जो लोग इस कार्य में रुचि रखते थे, उन्होंने कृषिकर्म को अपनी अजीविका का साधन बना लिया। यह वर्ग अन्य वर्गों की खाद्यान्न संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति भी करता था। वर्षा के बाद भूमि गीली होने पर सूर्य की तेज किरणों से जव उसमें ऊष्णता उत्पन्न होती थी, तब किसान/कृषिकर्मी बीजारोपण करता था, जिससे अंकुर उत्पन्न होकर धीरे-धीरे बढ़ते हुए फल-अवस्था को प्राप्त हो जाता था। विभिन्न धान्य पैदा किए जाते थे और वे सब प्रचुररूप से उत्पन्न होते थे। नगरों में कोल्हू अर्थात् कुटीयंत्र' थे जिसमें गन्ने का रस व तैल आदि निकाला जाता था। खेतों व बगीचों में नहरों व नदियों, कुओं'', बावड़िओं, और सरोवर व तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती थी। प्रपा' भी सिंचाई के साधन थे जिन्हें आज “अहर" कहा जाता है। खेत के पास गड्ढा खोद कर उसमें संचित किए गए पानी से सिंचाई करना अहर कहलाता है। कुँओं में घटीयंत्र' अर्थात् रहट लगाकर भी सिंचाई करते थे। आदिपुराण में “कुल्याप्रणालीप्रसृतोदका16" के कथन से स्पष्ट है कि सिंचाई के लिए नहरों में से कुल्यायें अर्थात् नालियां बनाकर पानी को अपने खेतों में लाया जाता था। वर्षा का जल भी सिंचाई का साधन था। स्पष्ट है कि आदिकाल में कृषि केवल वर्षा पर अवलम्बित न होकर कृत्रिम सिंचाई के साधनों पर भी अवलम्बित थी। आदिपुराण के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि कृषकबालायें छो-छो करके पक्षियों को उडाकर अपने खेतों की रक्षा करती थीं। खेतों में
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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