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अनेकान्त 60/3
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चंचापुरुष " स्थापित किए जाते थे, जिसे देखकर पशु डरकर भाग जाते थे । चंचापुरुष स्थापित करने की यह परम्परा आज भी विद्यमान है
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आदिपुराण से स्पष्ट है कि तत्कालीन किसान बुआई, निदाई, कटाई, मडाई एवं ओसाना आदि क्रियाओं से भलीभांति विज्ञ थे । 2" पलाल 21 अर्थात् ओसाने की क्रिया से भी वे विज्ञ थे। फसल काटने में यदि कहीं संघर्ष हो जाता था, तो उसकी सूचना वे सूर्यवाद्य 22 अर्थात् तुरही द्वारा देते थे ।
कृषि की समृद्धि हेतु राज्य भी खाद, बीज व अन्य उपकरण उपलब्ध कराता था । आपत्काल आदि की व्यवस्था हेतु राज्य खाद्यान्न का विशाल भण्डार बना कर रखता था 24 |
इस प्रकार आदि कालीन “कृषि करो और ऋषि जीवन बिताओ" का सिद्धान्त आज भी भारत के ग्रामीण अंचलों में विद्यमान है 1 कृषिकर्म में संलग्न व्यक्तियों को क्षत्रियवर्ग के बाद अत्यन्त महत्वपूर्ण
स्थान प्राप्त था ।
4. विद्याकर्म
“विद्याशास्त्रोपयजीविने 25 से ज्ञात होता है कि अध्यापन, नृत्य, गायन आदि के द्वारा आजीविका कमाना विद्याकर्म है । ऋषभदेव के उपदेशों व शिक्षा से प्रभावित होकर कुछ व्यक्तियों ने पठन-पाठन, अध्यापन, गायन, नृत्य तथा आवश्यक क्रियाकाण्डों के सम्पादन को अपनी आजीविका का साधन बनाया। इन लोगों को आजीविका प्रदान करना राज्य का भी उत्तरदायित्व माना जाता था । दिन भर परिश्रम करने के बाद थकावट दूर करने एवं पुनः तरोताजा होने के लिए मनोरंजन के साधन भी आवश्यक हैं । कारखाना अधिनियम 1948 के अन्तर्गत भी इनकी अनिवार्यता आज भी स्वीकार की गई है । किन्तु सभ्यता के आदिकाल में ऋषभदेव ने नृत्य, गान, वाद्य बजाना आदि की शिक्षा दी थी। जिन लोगों ने इसे आजीविका का साधन बनाया, वे विद्याजीवी कहलाये ।