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________________ अनेकान्त 60/1-2 चाहिए | क्योंकि जिसके पास रत्नत्रय विद्यमान है वह विनय योग्य है 1 हॉ, विनय में किससे कैसा व्यवहार और कैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए? सो ऊपर बताया हुआ है । भगवती आराधना में यह भी बताया गया है कि संयमोपकरण ज्ञानोपकरण तथा अन्य भी जो उपकरण उनमें औषधादि में आतपनादि योगों में इच्छाकार करना चाहिए ।" यहाँ मुनियों से भिन्न पात्रों को इच्छाकार का विधान किया गया है, न की वन्दना का है । वन्दना के योग्य तो रत्नत्रयधारी मुनि ही कहे गये हैं अर्थात् दर्शन ज्ञान चारित्र और तपविनय में स्थित सराहनीय गणधरों द्वारा गुणानुवाद किये जाने वाले साधु ही वन्दने योग्य हैं।" और भी कहा है 'अनेक प्रकार के साधु सम्बन्धी गुणों से युक्त पूज्य साधु ही मोक्ष की प्राप्ति के लिए तत्त्वज्ञानियों द्वारा वन्दने योग्य हैं। 13 वन्दना कब करना चाहिए इसका भी विधान है 'एकान्त भूमि में पद्मासनादि से स्वस्थ चित्तरूप से बैठे हुए मुनि की वन्दना करनी चाहिए और वह भी उनकी विज्ञप्ति लेकर करना चाहिए । आलोचना के समय, प्रश्न के समय, पूजा व स्वाध्याय के समय तथा क्रोधादि अपराध के समय आचार्य, उपाध्याय, साधु की वन्दना करनी चाहिए। 14 दिगम्बर मुनि जो पूर्ण संयम का पालन करते हैं, अट्ठाईस मूलगुणों से सम्पन्न हैं, वे अवश्य ही वन्द्य हैं। जो उत्कृष्ट चारित्र वाले साधु की वन्दना नहीं करता है वह जिनागम से बाह्य है । और मिथ्यादृष्टि है जैसा कि कहा भी है 8 सहजुप्पण्णं रूवं दठ्ठे जो मण्णएण मच्छरिओ । सो संजम पडिवण्णो मिच्छाइट्ठी हवइ एसो ।। 24।। दंसणपाहुड जो सहजोत्पन्न यथाजात रूप को देखकर मान्य नहीं करता तथा उसका विनय सत्कार नहीं करता और मत्सरभाव करता है, वह यदि संयमप्रतिपन्न भी है, तो भी मिथ्यादृष्टि है । इससे स्पष्ट है कि संयत मुनि पचपरपमेष्ठी के समान पूज्य हैं 1 अरिहन्त सिद्ध सकल जिन हैं, आचार्य आदि एकदेश जिन हैं । इनमें अरिहन्त आदि के समान देवत्व है । अत उन्हीं के समान वन्द्य हैं और
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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