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अनेकान्त 60/1-2
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पाटन में है। यह छः सों में लिखा गया महाकाव्य है। इसके तीन सों में दान, शील, तप और भावना का महत्व भी दर्शाया गया है। इसमें अनुष्टुप छन्द का प्रयोग किया गया है। भाषा प्रवाहयुक्त एवं उसमें अनुप्रास की झंकृति दिखाई पड़ती है।
पार्श्वनाथ चरित - यह सर्वानंद सूरि द्वारा रचित संस्कृत भाषा में लिखा गया काव्य है। इसमें 5 सर्ग हैं। इसकी एक मात्र ताड़पत्रीय मिली है। वह भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। प्रारंभ के 156 पृष्ठ लुप्त हैं। कुल 354 पृष्ठ हैं। इसका रचनाकाल 1234 ई. माना जाता है। कथावस्तु के बारे में कोई उल्लेख नहीं है।
पार्श्वनाथ चरित
यह आठ सर्गों का महाकाव्य है। इसके प्रत्येक सर्ग भवांकित लिखा गया है।16 सर्गों के नाम भी वर्ण्य विषय के नाम पर लिखे गये हैं। कथानक परम्परागत हैं। कवि ने इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया है।
पासणाह चरिउ – देवचन्द्र द्वारा रचित इस काव्य में 11 संधि और 202 कड़वक हैं। इसमें भगवान पार्श्व के पूर्वभवों के साथ उनको जीवन पर प्रकाश डाला है। यह अभी तक अप्रकाशित है। यह 1492 ई. की रचना है। इसकी एक प्रति सरस्वती भवन नागौर में है।
पासणाह चरिउ – रइधू ग्रंथावली में पासणाहचरिउ ग्रंथ भी मिलता है। रइधू ने इसे 15वीं शताब्दी में लिखा है। यह ग्रंथ सात संधियों में विभक्त है। रइधू की समस्त कृतियों में यह कृति अत्यन्त श्रेष्ठ, सरल एवं रुचिकर है। पार्श्वनाथ चरित वर्णन के साथ तत्कालीन सभ्यता संस्कृति, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक स्थिति का पता चलता है। डॉ. राजाराम जी जैन ने इस पर शोध कार्य किया है। इन ग्रंथों के अलावा रिट्ठणेमिचरिउ, वड्डमाणचरिउ, चंदप्पहचरिउ, मिणाहचरिउ, संभवनाहचरिउ, शांतिणाहचरिउ आदि ग्रंथ लिखे गये। इसके अतिरिक्त हिन्दी भाषा में भी तीर्थकर साहित्य लिखे गये हैं।