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________________ अनेकान्त 60/1-2 निर्वासन, कमठ का सर्प, सिंह, भील आदि द्वारा बदला लेना । अष्टम संधि से पार्श्वनाथ का वर्णन प्रारम्भ होता है । अष्टम से अष्टादश संधि तक द्वयसेन और वामा के गर्भरूप पार्श्वनाथ की उत्पत्ति, यवनराज के साथ पार्श्वनाथ का युद्ध, यवनराज का बंदी बनाया जाना, कुमार पार्श्व के द्वारा कमठ के जीव ब्राह्मण कुलोत्पन्न, मिथ्या तप से अलग होने की सलाह, तपस्या में लीन पार्श्वकुमार का असुरेन्द्र कमठ के जीव द्वारा उपसर्ग, नागराज द्वारा पार्श्वनाथ की रक्षा, केवल ज्ञानोत्पत्ति, असुरेन्द्र और पार्श्वनाथ की शरण में जाना एवं समवशरण का विवेचन किया गया । इस ग्रंथ में जैन सिद्धांतों का विस्तृत विवेचन है । काव्य की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण ग्रंथ है । है 106 पासणाह चरिउ देवदत्त द्वारा रचित काव्य है किन्तु डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने इसका नाम मात्र ही उल्लेख किया है। इस कृति का परिचय उपलब्ध नहीं है ।" पासणाह चरिउ यह विबुध श्रीधर रचित है। अपभ्रंश भाषा में लिखित पौराणिक महाकाव्य है । दूसरी कथावस्तु 12 संधियों में विभक्त है। पार्श्व की कथावस्तु परम्परागत ही है । इसकी रचना 1123 ई. में मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी रविवार को हुई थी । काव्य की दृष्टि से यह उच्च कोटि की रचना है। इसमें नदियों, नगरों आदि का भौगोलिक वर्णन है । भाषा सरस एवं अलंकारिक होने के कारण काव्य अत्यन्त रोचक बन पड़ा है। 7 पार्श्वनाथ चरित इस काव्य को 12वीं शताब्दी में विनयचंद सूरी ने लिखा है । यह एक महाकाव्य है । इसका कथानक भी परम्परायुक्त है । कोई भी मौलिक परिवर्तन एवं परिवर्द्धन नहीं हुआ है। धार्मिक विचारों के प्रतिपादन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । उन धार्मिक विचारों के प्रतिपादन के स्वरूप अनेक अवान्तर कथाओं का समावेश है अभी तक प्रकाशित नहीं होने के कारण अवान्तर कथाओं का पता नहीं चल पाया है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियां हेमचन्द्राचार्य ज्ञान मन्दिर -
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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