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________________ अनेकान्त 59 / 1-2 91 करना चाहिये था, अन्य बातों का नहीं । 'मज्झिमनिकाय' के 'अभयराजकुमार' नामक सुत्त में कथन है कि एकबार निगण्ठ नाटपुत्त ( महावीर ) ने अपने शिष्य अभयकुमार को बुद्ध के साथ वाद-विवाद करने को भेजा । अभयकुमार ने बुद्ध से प्रश्न किया कि क्या आप दूसरों को अप्रिय लगने वाली वाणी बोलते हैं? बुद्ध ने विस्तृत व्याख्या करते हुए उत्तर दिया कि बुद्ध 'भूत, तच्छ (तथ्य) और अत्थसहित ' वचनों का प्रयोग करते हैं, वे वचन चाहे प्रिय हों या अप्रिय । बुद्ध के उत्तर से संतुष्ट हो अभयकुमार ने कहा 'अनस्सुं निग्गण्ठा' ( अनश्यन् निर्ग्रन्थाः ) अर्थात् निर्ग्रथ नष्ट हो गये। महावीर और उनके अनुयायियों का चित्रण बौद्धों के पाली ग्रंथों में किस तरह किया गया है, यह बताने के लिये हम मज्झिमनिकाय के उपालिसुत्त का सारांश नीचे देते हैं एक बार दीर्घतपस्वी निर्ग्रथ बुद्ध के पास गये । बुद्ध ने प्रश्न किया, निर्ग्रथ ज्ञातपुत्र ( महावीर ) ने पाप कर्मों को रोकने के लिये कितने दण्डों का विधान किया है? दीर्घतपस्वी ने उत्तर दिया, तीन कायदण्ड, वचोदण्ड और मनोदण्ड । बुद्ध ने पूछा इन तीनों में किसको महासावद्यरूप कहा है? दीर्घतपस्वी ने कहा कायदण्ड को। बाद में दीर्घतपस्वी ने बुद्ध से प्रश्न किया, आपने कितने दण्डों का विधान किया है ? बुद्ध ने कहा, कायकम्म, वचीकम्म और मनोकम्म; तथा इनमें मनोकम्म को मैं महासावद्यरूप कहता हूँ । इसके पश्चात् दीर्घतपस्वी महावीर के पास आये । महावीर ने दीर्घतपस्वी का साधुवाद किया, और जिन शासन की प्रभावना करने के लिये उसकी प्रशंसा की । उस समय वहाँ गृहपति उपालि भी बैठे थे। उपालि ने महावीर से कहा कि आप मुझे बुद्ध के पास जाने की अनुमति दें, मैं उनसे इस विषय में विवाद करूँगा; तथा जैसे कोई बलवान पुरुष भेड़ के बच्चे को उठाकर घुमा देता है, उसी तरह मैं भी बुद्ध को हिला दूंगा, उनको परास्त कर दूंगा । इस पर दीर्घतपस्वी ने महावीर से कहा कि, भगवन् ! बुद्ध मायावी हैं, वे अपने मायाजाल से अन्य तीर्थिकों
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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