SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 59/1-2 इसलिए वे मांस निषेध की कड़ी शर्त उसमें नहीं लगाना चाहते थे। परन्तु महावीर इसके सख्त विरोधी थे। ब्रह्मचारी जी ने एक और नई खोज की हैं उनका कथन है कि “बुद्ध ने महावीर की नग्न मुनिचर्या को कठिन समझा, इसीलिये उन्होंने वस्त्रसहित साधुचर्या की प्रवृत्ति चलाई; तथा मध्यममार्ग जो श्रावकों ब्रह्मचारी श्रावकों का है, उसका प्रचार गौतम बुद्ध ने किया-सिद्धांत एक रक्खा।" ब्रह्मचारी जी की स्पष्ट मान्यता है कि जैनधर्म और बौद्धधर्म सिद्धांतों में कोई अंतर नहीं-अंतर सिर्फ इतना ही है कि महावीर ने नग्न-चर्या का उपदेश दिया, जब कि बुद्ध ने सवस्त्र-चर्या का। यदि ऐसी ही बात है तो फिर बौद्धधर्म और श्वेताम्बर जैनधर्म में तो थोड़ा भी अन्तर न होना चाहिये। किन्तु शायद ब्रह्मचारी जी को मालूम नहीं कि जितनी कड़ी समालोचना बौद्धधर्म की दिगम्बर शास्त्रों में मिलती है, उतनी ही श्वेताम्बर ग्रंथों में भी है। महावीर की स्तुति करते हुए अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका में हेमचन्द्रआचार्य ने बुद्ध की दयालुता का उपहास करते हुए उन पर कटाक्ष किया है। वह श्लोक निम्न रूप से है: जगत्यनुध्यानबलेन शश्वत् कृतार्थयत्सु प्रसर्भभवत्सु। किमाश्रितोऽन्यैःशरणं त्वदन्यः स्वमांसदानेन वृथा कृपालुः।। अपने उपकार-द्वारा जगत् को सदा कृतार्थ करने वाले ऐसे आपको छोड़कर अन्यवादियों ने अपने मांस का दान करके व्यर्थ ही कृपालु कहे जाने वाले की क्यों शरण ली, यह समझ में नहीं आता। (यह कटाक्ष बुद्ध के ऊपर है)। इतना ही नहीं, वुद्ध और महावीर के समय में भी जैन और बौद्धों में कितना अन्तर था, कितना वैमनस्य था, यह बात पाली ग्रन्थों से स्पष्ट हो जाती है। यदि दोनों धर्मों में केवल वस्त्र रखने और न रखने के ही ऊपर वाद-विवाद था, तो बुद्ध महावीर के अन्य सिद्धांतों का कभी विरोध न करते; उन्हें केवल महावीर की कठिन चर्या का ही विरोध
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy