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अनेकान्त 59/1-2
फिर तो अच्छे, बुरे कर्मों का कोई कर्ता और भोक्ता भी न मानना चाहिये। आदि।
नागसेन-मैं यह नहीं कहता।
मिलिन्द-क्या रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान मिलकर नागसेन बने हैं?
नागसेन-नहीं। मिलिन्द-क्या पाच स्कंधों के अतिरिक्त कोई नागसेन है? नागसेन नहीं। मिलिन्द-तो फिर सामने दिखाई देने वाले नागसेन क्या हैं? नागसेन महाराज, आप यहां रथ से आये हैं, या पैदल चलकर? मिलिन्द-रथ से?
नागसेन-आप यहाँ रथ से आये हैं तो मैं पूछता हूं कि रथ किसे कहते हैं? क्या पहियों को रथ कहते है? क्या धुरे को रथ कहत है? क्या रथ में लगे हुए डण्डों को रथ कहते हैं?
(मिलिन्द ने इनका उत्तर नकार में दिया)
नागसेन-तो क्या पहिये, धुरे, डण्डे आदि के अलावा रथ अलग वस्तु है?
(मिलिन्द ने फिर नकार कहा) नागसेन-तो फिर जिस रथ से आप आये हैं वह क्या है?
मिलिन्द-पहिये, धुरे, डण्डे आदि सबको मिलाकर व्यवहार से रथ कहा जाता है; पहिये आदि को छोड़ कर रथ कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं।
नागसेन-जिस प्रकार पहिये, धुरे आदि के अतिरिक्त रथ का स्वतंत्र