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अनेकान्त 59/1-2
खेद, मद (अहंकार), रति (प्रेम), विस्मय (आश्चय), निद्रा, जन्म, उद्वेग (अरति, घृणा) ये अठारह दोष नहीं पाये जाते।
केवलज्ञान के बिना मुक्ति नहीं :
केवलज्ञान को प्राप्त किये बिना जीवात्मा निर्वाण पद प्राप्त नहीं कर सकता अर्थात् संसार से मुक्त नहीं हो सकता। आ. अकलंक देव ने तत्वार्थ राजवार्तिक में लिखा है कि
“यतश्च केवलेनैव सह निर्वाणं न क्षयोपशमिकज्ञानैः सह, अतो. ऽन्ते केवलग्रहणम् ।” . __ अर्थ- केवलज्ञान के साथ ही निर्वाण होता है न कि क्षायोपशमिक मति आदि ज्ञानों के साथ। अतः ज्ञान के क्रम में केवलज्ञान का अंत में निर्देश किया है।
केवलज्ञान का सद्भाव सिद्धावस्था में भी- मोक्ष प्राप्ति के उपरांत जीवात्मा शुद्ध अवस्था अर्थात् अविनाशी सिद्ध पद को प्राप्त कर लेता है। केवलज्ञान भी आत्मा का अविनाशी गुण है। अतः केवलज्ञान सिद्ध अवस्था में भी आत्मा के साथ विद्यमान रहता है। आ. उमास्वामी जी ने तत्वार्थ सूत्र में लिखा है“अन्यत्र केवल-सम्यकत्व-ज्ञान-दर्शन सिद्धत्वेभ्यः।"
–त.सू. 10/4 सिद्धों में केवलसम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन, और सिद्धत्व भाव का अभाव नहीं होता।
केवलज्ञान के विषय में यही कहा जा सकता है कि यह असीम है, अनंत है, अवर्णनीय है, प्रत्येक मोक्षमार्गी का चरम लक्ष्य है।
-पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर अपर बाजार, राँची (झारखण्ड)