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अनेकान्त 59/1-2
में भगवान का एक ही मुख रहता है पर अतिशय के कारण वे चतुर्मुख दिखते हैं। ___7. छाया नहीं पड़ना- कैवल्य प्राप्ति के उपरांत अर्हत् भगवान् का शरीर स्फटिक मणि के समान निर्मल, पारदर्शी एवं सप्त धातु से रहित हो जाता है इस कारण उनके शरीर की छाया नहीं पड़ती। ___8. निर्निमेष दृष्टि- अर्हत् भगवान् की पलकें नहीं झपकती इसे ही निर्निमेष दृष्टि कहा जाता है।
9. सर्वविद्येश्वरता- केवलज्ञान जैसी सर्वश्रेष्ठ विद्या एवं ऋद्धि को प्राप्त अर्हत् भगवान् को सभी विद्याओं का स्वामी कहा जाता है। ___10. नख और केशों का घटना बढ़ना नहीं- कैवल्य प्राप्ति के उपरांत अर्हत् भगवान् के नख एवं केश न बढ़ते हैं और न घटते हैं।
11. अनेक भाषा मय दिव्य ध्वनि- कैवल्य प्राप्ति के उपरांत उनकी दिव्य देशना (उपदेश) श्रोताओं को अठारह महाभाषाओं में एवं सात सौ क्षुद्र भाषाओं में सुनायी देती है अतः उनके समवशरण में पहुंचने वाले सभी मनुष्य, देव, पशु-पक्षी आदि उनके दिव्य उपदेश को अपनी-अपनी भाषा में ग्रहण कर लेते हैं।
केवलज्ञानी अठारह दोषों से रहित होते हैं :
केवलज्ञान प्राप्त होने के उपरांत ही अर्हत् अवस्था की प्राप्ति होती है। अतः अर्हत् परमात्मा या केवलज्ञानी में अठारह दोष नहीं रहते। इनका उल्लेख करते हुए आ. कुन्दकुन्द ने नियमसार में लिखा है
"छुहतण्हभीरुरोसो रागो मोहो चिंता जरा रुजा मिच्चू ।।
सेदं खेदं मदो रइ विम्हियणिद्दा जणुव्वेगो।।6।। अर्थात्- केवलज्ञानी अर्हत् परमात्मा में क्षुधा (भूख), तृषा (प्यास), भय, रोप (क्रोध), राग, मोह, चिन्ता, जरा, रोग, मृत्यु, स्वेद (पसीना),