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अनेकान्त 59/1-2
केवलज्ञान के अतिशय :
केवलज्ञान प्राप्त होने पर केवली भगवान् (अर्हत् भगवान) मे ग्यारह अलौकिक विशेषताएं प्रकट हो जाती हैं। जिन्हें अतिशय कहा जाता है। केवलज्ञान की प्राप्ति होने पर उत्पन्न होने वाले ग्यारह अतिशयो का वर्णन आचार्य यतिवृषभ ने तिलायपण्णत्ति में इस प्रकार किया है
1. चारों दिशाओं में एक सौ योजन तक सुभिक्ष-- कवनी भगवान् जहां विराजते हैं, वहा चारों ओर सो योजन (चार सो कोस) तक सुख, समृद्धि, निरोगता व्याप्त हो जाती है। वातावरण मगलमय एवं शांतिमय बन जाता है।
2. आकाशगमन- केवली भगवान् कैवल्य प्राप्ति के उपरात भूमि पर नही चलते। उनका परमौदारिक शरीर आकाश में गमन करता है।
3. हिंसा का अभाव- केवली भगवान् जिस ओर भी विहार करते हैं उधर चारो ओर का वातावरण अहिसामय हो जाता है। गाय एव शर एक ही घाट पर पानी पीने लगते हैं। उनके समवशरण (धर्म सभा) मे पहुंचकर प्राणी अपना जन्म-जात वैर भूलकर प्रेम व वात्सल्य से एक-दूसरे के निकट बैठते है। ___ 4. भोजन का अभाव- कैवल्य प्राप्ति के बाद केवली भगवान को शरीर सरक्षण हेतु किसी भी प्रकार के अन्न या जलाहार आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती अर्थात् वे भोजन ग्रहण नहीं करते। कंवनी कवलाहार नही करते।
5. उपसर्ग का अभाव- कैवल्य प्राप्ति के बाद अर्हत भगवान् पर कोई भी मनप्य, देव, पशु आदि उपसर्ग नहीं करता। उनके निकट पहुंचकर जीव अपने प्रतिशोध, वैर, वैमनष्यता को भूलकर श्रद्धा पूर्वक उनका भक्त बन जाता है। ____6. चतुर्मुखता- भगवान् के समवशरण (धर्मसभा) मे जो भी जीवगण पहुंचते हैं उन्हें भगवान का मुख अपनी ओर दिखाई देता है। अर्थात् भगवान् का मुख चारों दिशाओं में दिखाई देने लगता है। वास्तव