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________________ अनेकान्त 59/1-2 सबको युगपत् ( एक साथ) प्रकाशित करता है, वैसे सिद्ध परमेष्ठी का केवलज्ञान सम्पूर्ण ज्ञेयों को युगपत् जानता है । 78 केवलज्ञान का विषय क्षेत्र समस्त लोकालोक है : केवलज्ञान का विषय क्षेत्र सीमाओं में बँधा हुआ नहीं है, यह असीम है । केवलज्ञान का विषय क्षेत्र समस्त लोकालोक है । समस्त लोक- आलोक में ऐसा कोई स्थान शेष नहीं है जो केवलज्ञान से छिपा हुआ हो या केवलज्ञान का विषय न हो । आ. कुन्दकुन्द ने लिखा है “आदा णाण पमाणं गाणं णेयप्पमाण मुद्दिट्ठ | यं लोयालोयं तम्हा णाणं त सुव्वगयं" ।। प्रवचनसार-23 आत्मा ज्ञान प्रमाण है, ज्ञान ज्ञेय प्रमाण है, ज्ञेय लोकालोक है, इसलिए ज्ञान सर्वगत है । आचार्य नेमिचंद्र ने द्रव्य संग्रह में सिद्ध परमेष्ठी के स्वरूप की व्याख्या करते हुए केवलज्ञान की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है अष्टकर्म रूपी देह जिन्होंने नष्ट कर दी है तथा जो लोकालोक को जानने-देखने वाले हैं वे सिद्ध हैं । अतः अनेक आगम प्रमाणों से यह सिद्ध है कि केवलज्ञान का विषयगत क्षेत्र समस्त लोकालोक है। - निश्चय नय से केवलज्ञानी अपनी आत्मा को जानते हैं : केवलज्ञान के द्वारा केवली भगवान् समस्त चराचर जगत को जानते हैं । किन्तु निश्चय नय की दृष्टि से वे अपनी आत्मा को जानते हैं उक्त कथन का उल्लेख करते हुए आचार्य कुंदकुंद देव ने लिखा है 1 जाणदि पस्सदि सव्वं ववहारणयेण केवली भगवं । केवलणाणी जाणदि पस्सदि णियमेण अप्पाणं ।। - नियमसार, 159 व्यवहार नय के केवली सब कुछ जानते और देखते हैं किन्तु
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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