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________________ अनेकान्त 59 / 1-2 वा न किंचित्केवलज्ञानस्य विषयभावमतिक्रान्तमस्ति । अपरिमित माहात्म्यं हि तदिति ज्ञापनार्थं 'सर्वद्रव्यपर्यायेषु' इत्युच्यते ।" -सवार्थ-सिद्धि 1/29/230 77 ऐसा न कोई द्रव्य है और न पर्याय समूह है जो केवलज्ञान के विषय के परे हो । केवलज्ञान का माहात्म्य अपरिमित है। इसी बात का ज्ञान कराने के लिए सूत्र मे "सर्वद्रव्यपर्यायेषु" पद का प्रयोग किया गया है। केवलज्ञान के द्वारा द्रव्यों की त्रिकालवर्ती (भूत, भविष्य एवं वर्तमान) पर्यायों को एक साथ कैसे जाना जा सकता है? इस प्रश्न का समाधान देते हुए आ. अमृतचंद्रजी प्रवचनसार की टीका में लिखते हैं“किंच चित्रपटस्थानीयत्त्वात् संविदः यथा हि चित्रपट्यामतिवाहिता नामनुपस्थितानां वर्तमानानां च वस्तूनामालेख्याकाराः साक्षादेकक्षण एवावभासन्ते, तथा संविद्भित्तावपि " -प्रवचनसार/तत्वप्रदी. 37 ज्ञान चित्रपट के समान है । जैसे चित्रपट में अतीत अनागत और वर्तमान पदार्थ आलेख्याकार साक्षात् एक समय में भासित होते है । उसी प्रकार ज्ञानरूपी भित्ति में भी भाषित होते हैं T केवलज्ञान समस्त ज्ञेयों को युगपत् जानता है - केवलज्ञान में समस्त-रूपी - अरूपी द्रव्यो की समस्त पर्यायों का ज्ञान युगपत् होता है 1 यदि इन पर्यायों को केवलज्ञान क्रमपूर्वक जानेगा तब एक समय मे समस्त पर्यायो का ज्ञान नहीं हो सकता, अतः वह उन्हें अवग्रहादि क्रियाओं से न जानकर अक्रम रूप से एक समय में समस्त द्रव्यों की पर्यायों को प्रत्यक्ष जानता है । आचार्य शिवकोटि जी ने लिखा है "भावे सगविसयत्थे सूरो जुगवं जहा पयासेई । सत्वं वि तहा जुगवं केवलणाणं पयासेदि" ।। भगवती आराधना 2142 जैसे सूर्य के प्रकाश में जितने पदार्थ समाविष्ट होते हैं वह उन
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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