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अनेकान्त 59/1-2
केवलज्ञान का विषय :
केवलज्ञान एक सर्वोत्कृष्ट ज्ञान है, इसके सर्वोपरि होने का कारण यह है कि इसका विषय क्षेत्र सभी द्रव्यों की सभी पर्यायें है। इससे भी बड़ी विशेषता यह है कि इस ज्ञान के द्वारा सभी द्रव्यों की त्रिकालवर्ती पर्यायों को एक ही समय में युगपत् ( एक साथ) जाना जा सकता है । केवलज्ञान की इन्हीं विशेषताओं के कारण अनेक तार्किक एवं अनेक दर्शनवादी इसे केवल काल्पनिक ज्ञान बताते हैं । वे केवलज्ञान के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगाने से भी नहीं चूकते।
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मिथ्यावादियों के इसी भ्रम एवं अज्ञानता के कारण अनेक जैनाचार्यों ने केवलज्ञान के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए ठोस तर्क एवं युक्तियाँ भी दी हैं । उन्होंने कहा है कि आत्मा में अनंत शक्तियां हैं उन्हीं अनंत शक्तियों में से ज्ञान आत्मा की प्रधान शक्ति है। ज्ञान आत्मा का स्वभाव है इसीलिए जैनाचार्यों ने कहा ज्ञान आत्मा का ऐसा गुण है जिसे त्रिकाल में भी आत्मा से पृथक् नहीं किया जा सकता, ज्ञान के अभाव में आत्मा की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
सभी संसारी एवं मुक्त आत्माओं में अनंत ज्ञान शक्ति विद्यमान है। इस सत्य के बावजूद भी संसारी प्राणियों में ज्ञान की समानता नहीं देखी जाती है, सभी संसारी प्राणियों का ज्ञान भिन्न-भिन्न स्तर का देखने में आता है। इस रहस्य को स्पष्ट करते हुए जैनाचार्यों ने स्पष्ट किया कि सभी आत्माओं में अनंत ज्ञान शक्ति रूप में विद्यमान रहते हुए भी उसकी अभिव्यक्ति न होने के कारण संसारी प्राणियों के ज्ञान में असमानता देखने में आती है ।
इस अनंत ज्ञान की अभिव्यक्ति न हो पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण ज्ञानावरण. नाम का कर्म है। इस कर्म का आत्मा से अनादिकालीन संबंध है, इसके कारण आत्मा के अनंत ज्ञान पर आवरण पड़ा रहता है। अपनी विशिष्ट पुरुषार्थ शक्ति के द्वारा आत्मा इस कर्म को क्षीण कर सकती है। ज्ञानावरण कर्म जिन अंशों में क्षीण होता जाता