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________________ अनेकान्त 59/1-2 सूत्र में प्रयुक्त 'च' शब्द के द्वारा यह स्पष्ट होता है कि घातिया कर्मों की सैंतालिस प्रकृतियों के साथ-साथ आयु कर्म की तीन एवं नाम कर्म की तेरह प्रकृतियों का क्षय भी केवलज्ञान प्राप्त होने से पूर्व हो जाता है। इसी तथ्य का समर्थन करते हुए श्री श्रुतसागर सूरि ने तत्त्वार्थसूत्र पर लिखी अपनी टीका तत्त्वार्थवृत्ति में लिखा-“सूत्र में प्रयुक्त 'च' शब्द से तीन आयु और नाम कर्म की तेरह प्रकृतियों के अर्थात सब मिलाकर त्रेसठ कर्म प्रकृतियों के क्षय होने से केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है। मोहनीय कर्म की अट्ठाईस, ज्ञानावरण की पांच, दर्शनावरण की नौ, अन्तराय की पांच तथा च शब्द से नरक आयु, तिर्यग् आयु एवं देवायु के क्षय होने के साथ ही साधारण, आतप, पंचेन्द्रिय के बिना चार जाति, नरक गति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, स्थावर, सूक्ष्म और उद्योत नाम कर्म की इन तेरह प्रकतियों के क्षय होने से केवलज्ञान उत्पन्न होता है।" कर्म क्षय एक क्रम पूर्वक होता है : - आचार्य उमास्वामी ने केवलज्ञान प्राप्ति के कारणों का उल्लेख करते हुए तत्वार्थसूत्र के दशमे अध्याय में प्रथम सूत्र में 'मोहक्षयात्' इस शब्द को सूत्र में सबसे आगे प्रथक् रखा है। सूत्र के इस व्यवस्थित शब्द क्रम में भी एक रहस्य छुपा हुआ है। इस रहस्य का उद्घाटन करते हुए आचार्य पूज्यपाद लिखते हैं "क्षयक्रमप्रतिपादनार्थों वाक्यभेदेन निर्देशः क्रियते। प्रागेव मोहं क्षयमुपनीयान्तर्मुहूर्त क्षीणकषायव्यपदेशमवाप्य ततो युगपज्ज्ञान दर्शनावरणान्तरायाणां क्षयं कृत्वा केवलमवाप्नोति इति।" -सर्वार्थसिद्धि 10/1/921 सूत्र में कर्मों के क्षय का क्रम बताने के लिए वाक्यों का भेद करके निर्देश किया है। पहले ही मोह का क्षय करके और अन्तर्मुहूर्त काल तक क्षीणकषाय संज्ञा को प्राप्त होकर अनन्तर ज्ञानावरण, दर्शनावरण, और अन्तराय कर्म का एक साथ क्षय करके केवलज्ञान को प्राप्त होता है।
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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