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अनेकान्त 59/1-2 दया को ऐसा सूर्य कहा है जिसके रहने पर पाप रूपी अंधकार ठहर नहीं सकता है।
अहिंसा कहाँ नहीं रहती- मानव सृष्टि का सबसे विवेकशील प्राणी है। इस कारण वह सुख की आकांक्षा के साथ-साथ प्रयास भी करता है। यह प्रयास जव बहु आरंभ एवं परिग्रह में पर्यवसित हो जाता है तो हिंसा का जन्म होता है। वहाँ से अहिंसा पलायन कर जाती है। हिंसा का प्रमुख कारण है-परिग्रह। इससे आर्थिक विषमता उत्पन्न होती है और उससे हिंसा जन्म लेती है। श्री सोमदेवसरि की तो स्पष्ट घोषणा है कि वहाँ अहिसा कैसे रह सकती है, जहाँ बहुत आरंभ और बहुत परिग्रह रहता है
'तत्राहिंसा कुतो यत्र वह्वारंभपरिग्रहः।19 अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए करणीय-अकरणीय
1. मद्य, मांस, मधु का त्याग-मद्य महामोह को करने वाला है, सव बुराईयों का मूल है और सब पापो में अग्रणी है। इसको पीने से मनुष्य को हित-अहित का विवेक नहीं रहता है। मद्य की एक बूंद में इतने जीव रहते हैं कि यदि वे फैल जाये तो समस्त जगत् मे भर जायें। अतः मद्यपान से प्राणी हिंसक बन जाता है। मास की प्राप्ति ही हिंसा-जन्य है। मधु मधुमक्खियो के अण्डा को निचोड़ने से पैदा होता है। यह रजो-वीर्य के मिश्रण के समान है। मधु का छत्ता उद्भान्त शिशु के गर्भ की तरह है। वह अण्डे में उत्पन्न जन्तुओं के समूह रूप है। अतः मधु के भक्षण में हिंसा है।20 अतः अहिंसा के आराधक को मद्य, मांस एवं मधु का त्याग कर देना चाहिए।
2. पंच उदुम्बर फलों का त्याग-बड, पीपल, ऊमर, कटमर आर पाकर इन पाँच फलों में स्थूल जन्तु रहते हैं, जो साफ दिखाई देते है। इन स्थूल जन्तुओं के निवास के अतिरिक्त शास्त्रों में प्रतिपादन किया गया है कि इन पाँच फलों में सूक्ष्म जन्तु भी रहते हैं। अतः हिंसा के कारण होने से ये फल त्याज्य हैं।2। इसी कारण इन फलो को जन्तुफल भी कहा जाता है।