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________________ अनेकान्त 59/1-2 3. कतिपय लोग धर्मबुद्धि से मांस-भक्षण में दोप नहीं मानते हैं। उनका यह भी कहना है कि देवता, अतिथि, पितर, मन्त्रसिद्धि, औषधि आदि में मांस भक्षण विहित है। श्री सोमदेवसूरि का कहना है कि धर्मबुद्धि से मांसभक्षण करना दुहरे पाप का कारण है। जो परस्त्रीगामी पुरुप अपनी माता के साथ संभोग करता है, वह दो पाप करता है। एक तो परस्त्री गमन करता है और दूसरे पूज्या माता के साथ संभोग करने का पाप करता है। वैसे ही जो मनुष्य धर्मबुद्धि से लालसा पूर्वक मांसभक्षण करता है वह एक तो मांसभक्षण का पाप करता है और दूसरे धर्म का ढोंग करने का पाप करता है। अतः कभी भी देवता, अतिथि, पितरों के लिए, मन्त्रसिद्धि के लिए, औपधि के लिए अथवा भय से हिंसा नहीं करना चाहिए। मांस भक्षण यदि धर्म है तो अधर्म क्या है? मांसत्याग का फल- श्री सोमदेवसूरि का कहना है कि मांस त्याग का महान् फल होता है। एक चाण्डाल का दृष्टान्त प्रस्तुत करते हुए उन्होंने लिखा है 'चण्डोऽवन्तिषु मातङ्गः पिशितस्य निवृत्तितः। . अत्यल्पकाल भाविन्याः प्रपेदे यक्षमुख्यताम् ।।13 अर्थात् अवन्ति देश में चण्ड नामक चाण्डाल ने थोड़ी देर के लिए भी मांस का त्याग कर दिया था। जिसके फल से वह मरकर यक्षों का अधिपति बना। संकल्पभेद से हिंसा में भेद- बाह्य प्राणी-घात के साम्य के आधार पर फल का साम्य होना नहीं है। क्योंकि मनुष्य के परिणाम ही पुण्य-पाप के कारण होते हैं। मन के निमित्त से ही शरीर और वचन की क्रिया भी शुभ और अशुभ होती है। उदाहरणार्थ-अच्छे इरादे से बच्चे को पीटना भी अच्छा है और बुरे इरादे से बच्चे को मिठाई खिलाना भी बुरा है। जगत् में ऐसी कोई भी क्रिया नहीं है, जिसमें हिंसा न होती हो, किन्तु हिंसा और अहिंसा के लिए गौण और मुख्य भावों की
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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