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अनेकान्त 59/1-2
इसका समाधान करते हुए श्री सोमदेवसूरि का कहना है कि ऐसा कहना ठीक नहीं है। मांस जीव का शरीर है यह ठीक है, किन्तु जो जीव का शरीर है वह मांस होता भी है और नहीं भी होता है। जैसे नीम वृक्ष होता है पर वृक्ष नीम होता भी है और नहीं भी होता है। ब्राह्मण और पक्षी दोनों में जीव है, फिर ही पक्षी को मारने की अपेक्षा ब्राह्मण को मारने में अधिक पाप है। वैसे ही फल भी जीव का शरीर है और मांस भी जीव का शरीर है, किन्तु फल खाने की अपेक्षा मांस खाने वाले को अधिक पाप होता है। जिसका यह कहना है कि फल और मांस दोनों ही जीव का शरीर होने से बराबर हैं, उसके लिए पत्नी और माता दोनो ही स्त्री होने से समान हैं और शराब तथा पानी दोनों पेय होने से समान हैं। अतः वह जिस प्रकार पानी और पत्नी का उपभोग करता है, वैसे ही शराव एवं माता का उपभोग क्यों नहीं करता है? इससे स्पष्ट है कि मूंग-उड़द एवं ऊँट-मेढ़ा को समान नहीं माना जा सकता है तथा मूंग-उड़द के समान ऊँट-मेढ़ा आदि भक्ष्य नहीं है। __2. कुछ लोगों का यह कुतर्क हो सकता है कि गोदुग्ध एवं धृत पशुजन्य हैं तथा गोमांस भी पशुजन्य हैं। अतः दुग्ध, धृत एवं मांस समान है।
इस तर्क का उत्तर देते हुए उपासकाध्ययनकार का कहना है कि एक स्रोत होने पर भी घी, दूध एवं मांस को एक समान नहीं माना जा सकता। गाय का का दूध शुद्ध है पर गोमांस शुद्ध नहीं है। वस्तु का वैचित्र्य ही ऐसा है। साँप की मणि से विष दूर होता है, जबकि साँप का विष मृत्यु का कारण है। मांस और घी-दूध का एक स्रोत होने पर भी मांस त्याज्य और दुग्ध पेय है। कारस्कर नामक विषवृक्ष का पत्ता आयुवर्धक होता है और उसकी जड़ मृत्यु का कारण होती है। इसी प्रकार मांस भी शरीर का हिस्सा है और घृत भी शरीर का हिस्सा है, फिर भी मांस में दोष है घी में नहीं। जैसे ब्राह्मण के जीभ से शराब का स्पर्श होने पर दोष होता है, पैर से स्पर्श होने पर नहीं।। अतः स्पष्ट है कि घी-दूध को तथा मांस को समान नहीं माना जा सकता है।