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________________ अनेकान्त 59 / 1-2 'उपासकाध्ययन' किया है। उपासकाध्ययन का मध्यम आश्वास प्रमुखतया अहिंसा के विवेचनपरक है । यशस्तिलकचम्पू के कथानक से फलित निकलता है कि जब राजा यशोधर एवं उनकी माता चन्द्रमती को आटे के मुर्गा की बलि देने के कारण छह जन्मों तक पशुयोनि में भ्रमण करना पड़ा तो साक्षात् हिंसा करने वालो की क्या स्थिति होगी ? यह चिन्तनीय है 1 63 1 उपासकाध्ययन में प्रतिपादित अहिंसा की उपयोगिता - मानव की पदलोलुपता एवं परिग्रहलिप्सा के कारण आज हिंसा का सर्वत्र बोलवाला है । शान्ति के लिए आविष्कृत वैज्ञानिक संसाधनों का प्रयोग आज क्रूरतम हिंसा के साधन के रूप में होने लगा है । शान्ति के नाम पर नरसंहार के जैसी जघन्यतम प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं । वैचारिक प्रदूषण के कारण मानव स्वयं अपपने अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है। लोग स्वार्थसिद्धि के लिए हिंसा के पक्ष में अनेक थोथे तर्क प्रस्तुत करने लगे हैं। श्रीसोमदेवसूरि ने उपासकाध्ययन में ऐसे कुतर्कों का युक्तियुक्त समाधान प्रस्तुत किया है। उनके प्रतिपादन में अहिंसा का एक सकारात्मक एवं व्यवहार्य जीवनदर्शन है, अतः उसकी उपयोगिता आज के परिप्रेक्ष्य में अधिक प्रासंगिक है । उद्योगी, विरोधी, आरंभी और संकल्पी चतुर्विध हिंसा में से यदि मात्र संकल्पी हिंसा का भी हम त्याग कर दें तो जगत् में हा-हाकार की स्थिति समाप्त हो सकती है । श्री समन्तभद्राचार्य ने मन, वचन, काय के संकल्प से और कृत, कारित, अनुमोदना से त्रस जीवों के घात न करने वाले को स्थूल हिसा से विरत अर्थात् अहिंसाणुव्रती कहा है 1 'संकल्पात् कृतकारितमननाद्योगत्रयस्य चरसत्त्वान् । न हिनस्ति यत्तादाहुः स्थूलवधाविरमणं निपुणः । ।'4 हिंसा और अहिंसा का स्वरूप- श्री सोमदेवसूरि ने अहिंसा धर्म का विवचेन करते हुए तत्त्वार्थसूत्रकार का अनुसरण किया है। वे लिखते हैं'यस्मात्प्रमादयोगेने प्राणिषु प्राणहापनम् । सा हिंसा रक्षणं तेषामहिंसा तु सतां मता ।।
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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