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अनेकान्त 59/1-2
में देव-गुरु-शास्त्र इन तीनों की उपासना समाहित की जा सकती है। स्वाध्याय, संयम और दान का अपना स्वतन्त्र महत्त्व है ही। शाकाहार को आवश्यक में स्वतन्त्र रूप से रखना इसलिए जरूरी समझा है कि वर्तमानयुग और भविष्य के सभी युगों में श्रावकों को सबसे बड़ी मुसीबत बनने वाला है-प्रत्यक्ष और परोक्ष मांसाहार। अतः श्रावक शाकाहारी बना रहे यह बहुत आवश्यक है।
अध्यक्ष जैन दर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री रा. सं. विद्यापीठ
नई दिल्ली-16