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अनेकान्त 59/1-2
____9. कुन्दकुन्दश्रावकाचार में व्रत, दस धर्म, षडावश्यक इनमें से छांटकर दस आवश्यक स्वीकार कर लिये गये हैं।
विचार बिन्दु
इस प्रकार हम पाते हैं कि वर्तमान में हम जिन्हें श्रावकों का षडावश्यक स्वीकार कर रहे हैं उसके निर्मित होने में विचारों का एक इतिहास है। उसमें प्रत्येक युग अपने चिन्तन का सार्थक हस्तक्षेप करता रहा है। वर्तमान आधुनिक युग के उत्तरार्द्ध में एवं उत्तर आधुनिक युग की भूमिका में ये परम्परा प्राप्त षडावश्यक हमारे जीवन से कपूर की तरह उड़ते जा रहे हैं। यदि शेष हैं तो सिर्फ उनकी बातें और बनावटी या रुढ़िग्रस्त आचरण। यह इसलिए भी है कि अभी तक वैधानिक रूप से हमने इसमें युगानुकूल सार्थक आवश्यक परिष्कार नहीं किया है। इन्हीं आवश्यकों में यदि हम विधिवत् कुछ जोड़ने और घटाने का सामर्थ्य नहीं रखते हैं तो नगरीकरण, महानगरीकरण और भूमण्डलीकरण के इस उत्तर आधुनिक युग की ओर बढ़ते युग में श्रावक स्वयं ही परिस्थिति जन्य नया श्रावकाचार बना ले रहा है।
उदाहरण स्वरूप हम विचार करें कि 'तप' नामक आवश्यक में 'बाह्यतप' क्या नया श्रावक प्रतिदिन पाल सकता है? हमें श्रावक के दैनिक कर्तव्यों में उन न्यूनतम मापदण्डों पर विचार करना चाहिए जो नामधारी जन्मना जैन, सामान्य श्रावक भी पाल सकें। मेरी दृष्टि में पुराने तथा नये सभी षडावश्यकों को ध्यान में रखते हुये निम्न षडावश्यक आज के युग में आवश्यक हैं
(1) सामायिक (2) पूजा (3) स्वाध्याय (4) संयम (5) दान (6) शाकाहार
यहाँ सामायिक के अन्तर्गत श्रावकों के लिए स्तवन, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग को गर्भित कर सकते हैं। पूजा