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________________ अनेकान्त 59/1-2 पद्मकृतश्रावकाचार (5/66-70) में लगभग अस्सी पद्यों में दान का वर्णन है। किशनसिंह क्रियाकोष (5/143-150) में 39 पद्यों में दान का विस्तार से वर्णन है। दौलतराम क्रियाकोष में दान इतना अनिवार्य कहा है कि यदि कोई यह कहे कि मैं निर्धन हूँ दान नहीं कर सकता तो भी उसे थोड़ा बहुत दान प्रतिदिन करना चाहिए- (5/380/58,60,61) कोउ कुबुद्धी कूर, चितवै चित में इह भया। लहिहौं धनअतिपूर, तब करिहूँ दानहि विधी।। यो न विचारै मूढ, शक्ति प्रमाणों त्याग है। होय धर्म आरुढ़, करे दान जिनवैन सुनि।। कुछ हु नाहिं जुरै जु, तौहू रोटी एक ही। ज्ञानी दान करै जु, दान बिना घृग जनम है।। इस प्रकार जैनाचार्यों ने श्रावकों के लिए आवश्यक में 'दान' को इसलिए रखा क्योंकि धर्म, तीर्थ रक्षा श्रावकों पर ही आश्रित है तथा इससे महान् पुण्य का बंध होता है। निष्कर्ष श्रावकाचार संग्रह में श्रावकों के षडावश्यकों पर यत्किञ्चित् अध्ययन के उपरान्त कुछ निष्कर्ष सामने आये हैं। ये निष्कर्ष स्थूल हैं अधिक गहरायी से अध्ययन किया जाय तो और अधिक बिन्दु भी प्राप्त हो सकते हैं किन्तु सरसरी निगाह से श्रावकाचार संग्रह के पांचों भागों का अध्ययन करने पर हम निम्न निष्कर्षों पर पहुंच रहे हैं__1. श्रावकों के षडावश्यकों की विधिवत् चर्चा आचार्य जिनसेन करते हैं। जहाँ सम्भवतः उन्हें सर्व-प्रथम लगा कि जिस प्रकार मुनियों के षडावश्यक होते हैं उसी प्रकार श्रावकों के भी होने चाहिए। उन्होंने पूजा करना, कृषि आदि आजीविका हेतु करना, दान, स्वाध्याय, संयम और तप-ये छह आवश्यक बताए।
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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