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________________ अनेकान्त 59/1-2 परिग्रह के दृढ़ पिंजरे में बन्द हो, जो प्रशमभाव, शीलव्रत और गुणव्रत से रहित हो, जो कषायरूप भुजंगों से सेवित हो और इन्द्रियों के विषयों का लोलुपी हो, ऐसे पुरुष को अपात्र कहते हैं (1/357/36-38)। इसके वाद एकादश परिच्छेद में अभय दान, आहार दान, औषधि दान, शास्त्र दान, वसतिका दान, और वस्त्र दान इन छह प्रकार के दानों, उनकी विधियों तथा फलों का विस्तार से वर्णन है (1/362-67/1/1-70)। सागार धर्मामृत में पं. आशाधर जी कहते हैं कि 'गृहस्थ' के द्वारा पात्र, आगम, विधि, द्रव्य, देश ओर काल का उल्लङ्घन नहीं करके अपनी शक्ति के अनुसार दान दिया जाना चाहिये और तप भी किया जाना चाहिए पात्रागमविधिद्रव्यदेशकालानतिक्रमात् । दानं देयं गृहस्थेन तपश्चर्यं च शक्तितः।। (2/14/48) चारो प्रकार के दान के अलावा पण्डित जी ने कन्यादान को भी महत्त्वपूर्ण माना है और कहा है कि गृहस्थ के द्वारा गर्भाधान आदिक क्रियाओ की तथा अनेक मंत्रों की, व्रतनियमादिकों की रक्षा की आकांक्षा से सहधर्मियों के लिए यथायोग्य कन्यादि को दिया जाना चाहिए निस्तारकोत्तमायाथ मध्यमाय सधर्मणे। कन्याभूहेमहस्त्यश्वरथरलादि निर्वपेत् ।। (2/15/56) दाता का लक्षण बताते हुये कहते हैं भक्तिश्रद्धासत्त्वतुष्टिज्ञानलौल्यक्षमागुणः। नवकोटीविशुद्धस्य दाता दानस्य यः पतिः।। (2/59/47) अर्थात् 'नव कोटि विशुद्ध दान का जो पति है वह दाता है। भक्ति, श्रद्धा, सत्त्व, तुष्टि, ज्ञान, अलौल्य और क्षमा ये सात दाता के गुण हैं।' सागार धर्मामृत में अनेक प्रकारों से दान, दाता, देय इन सभी की विस्तार से व्याख्या की है। धर्मसंग्रह श्रावकाचार में भी सागारधर्मामृत के समान कन्यादान को
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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