________________
अनेकान्त 59/12
अपने एक देशव्रत के अनुसार सयम का पालन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि सयम के द्वारा ही उनका देशव्रत फलीभूत होता है
देशव्रतानुसारेण संयमोऽपि निषेव्यते।
गृहस्थैर्येन तेनैव जायते फलवद् व्रतम्। ( 12(922) वामदेवविरचित संस्कृत भावसंग्रह में गृहस्था के एक संदेश मंयम का लक्षण किया है
प्राणिनां रक्षणं त्रेधा तथाक्षप्रसरार्हतः।
एकोद्देशमिति प्राहुः संयम गृहमेधिनाम् ।। ( 3 177. 160) अर्थात्-' प्राणियो की मन वचन काय से रक्षा करना और इन्द्रियों के विपयों में वढते हुये प्रसार का रोकना इसे गृहस्थों का एकदेशसंयम कहते हैं।'
5. तप
जिस प्रकार साधुओं के लिए तप आवश्यक है उसी प्रकार गृहस्थों के लिए भी वह एकदेश करणीय है। जैनाचार्यो ने तप के विषय में लगभग एक राय रखी है।
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय में आचार्य अमृतचन्द्र ने बारह तपों को यथाशक्ति करने का उपदेश दिया है-वे कहते हैं कि चारित्र में अन्तर्भाव होने से तप भी मोक्ष का कारण आगम में कहा गया है, इसलिए अपने बल-वीर्य को न छिपाकर सावधानचित्त श्रावकों को उस तप का भी सेवन करना चाहिए।
चारित्रान्तर्भावात्तपोऽपि मोक्षाङ्गमागमे गदितम् । . अनिगूहितनिजवीर्यैस्तदपि निषेव्यं समाहितस्वान्तैः।।
(1/119/197) ____ इसी के साथ आचार्य अमृतचन्द्र ने अन्तरंग और बाह्य तप ये दो भेद करते हुये, इनके निम्न छह-छह भेद गिनाये हैं- (1/119/198-199)