________________
अनेकान्त 59/1-2
अमावस्या, पूर्णमासी और अष्टमी के दिन अध्ययन का निषेध किया है तथा कहा गया है कि सूतक के समय और राहु के द्वारा चन्द्र-सूर्य के ग्रहण होने के काल में भी नहीं पढ़ना चाहिए। इसी प्रकार उल्कापात, वज्रपात, भूकम्प और मेघगर्जन होने पर, मरण को प्राप्त हुए बन्धु जनों के प्रेतकर्म करने पर, अकाल में बिजली चमकने पर, भ्रष्ट और मलिन पुरुष के तथा अपवित्र वस्तु के सानिध्य में, शमशान में, दिन में रात्रि के समान अन्धकार होने पर और अपनी शारीरिक अशुचि दशा होने पर नहीं पढ़ना चाहिए (4/83-84/121-125)। इसके अलावा कुन्दकुन्द श्रावकाचार में बताया है कि गणित, ज्योतिष, साहित्य, तर्कशास्त्र, संस्कृत, सौरसेनी, मागधी, पैशाची, अपभ्रंश भाषा, व्याकरण का भी पढ़ने का लक्ष्य रखना चाहिए (4/84/129-136)। दौलतराम जी ने क्रियाकोश में स्वाध्याय की महत्ता को बतलाया है। स्वाध्याय के पांच भेदों का भी वर्णन किया है। (4/349/64-77) एक सुन्दर दोहा कहा है जिसमें स्वाध्याय का मर्म समाहित है
केवल आतम अर्थ जो करै सूत्र अभ्यास। अपनी पूजा नहिं चहै, पावै तत्त्व अध्यास।।
4. संयम
___ संयम एक ऐसा आवश्यक है जिसमें संपूर्ण श्रावकाचार गर्भित हो जाता है। सभी व्रतों को अपने में संजोने वाले संयम को श्रावक का आवश्यक कर्त्तव्य माना गया है। असंयमी का धर्म के क्षेत्र में कोई मूल्य नहीं है। आचार्यों ने संयम की परिभाषा तथा व्याख्या बहुत विस्तार से की है। __ यशस्तिलकचम्पू में संयम की परिभाषा करते हुये कहा गया है कि आत्मा का कल्याण चाहने वालों के द्वारा जो कषायों का निग्रह, इन्द्रियों का जय, मन वचन और काय की प्रवृत्तियों का त्याग तथा व्रतों का पालन किया जाता है उसे संयमी पुरुष संयम कहते हैं