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________________ अनेकान्त 59/1-2 स्वाध्यायोऽध्ययनं स्वस्मै जैनसूत्रस्य युक्तितः। अज्ञानप्रतिकूलत्वात्तपः स्वेष परं तपः।। (2/170/211) आगे आचार्य स्वाध्याय को मोक्ष का कारण बताते हुए कहते हैं कि "स्वाध्याय के करने से ज्ञान की वृद्धि होती है, ज्ञान की वृद्धि होने से चित्त में उत्कट वैराग्य होता है, वैराग्य के होने से परिग्रह का त्याग होता है उससे ध्यान होता है, ध्यान के होने से आत्मा की उपलब्धि होती है, आत्मा की उपलब्धि होने से ज्ञानावरणादि आठ कर्मो का नाश होता है और कर्मो का नाश ही मोक्ष कहा जाता है। अतः यह स्वाध्याय परंपरा मोक्ष का कारण है इसलिए भव्य पुरुषों को-शक्त्यनुसार स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।" स्वाध्यायाज्ज्ञानवृद्धिः स्यात्तस्यां वैराग्यमुल्बणम् । तस्मात्सङ्गपरित्यागस्ततश्चित्तनिरोधनम् ।। तस्मिन्ध्यानं प्रजायेत ततश्चात्मप्रकाशनम्। तत्र कर्मक्षयाऽवश्यं स एव परमं पदम्।। (2/170/213) वे आगे कहते हैं- पूर्वकाल में जितने सिद्ध हुये हैं, आगामी होंगे तथा वर्तमान में होने योग्य हैं वे सब नियम से इस स्वाध्याय सं ही हुए हैं तथा होने वाले हैं। इसलिए संसार का नाश करने वाला यही स्वाध्याय मोक्ष का कारण है। अतः भव्यगृहस्थों को स्वाध्याय परम्परा मोक्ष का कारण जानकर, एकान्त स्थान में बैठकर मन, वचन, काय की शद्धि पूर्वक नित्य तथा नैमित्तिक स्वाध्याय करना चाहिए सिद्धाः सेत्स्यन्ति सिद्ध्यन्ति ये ते स्वाध्यायतो ध्रुवम् । अतः स एव मोक्षस्य कारणं भववारणम् ।। इति सद्गृहिणा कार्यो नित्यो नैमित्तिकोऽपि च। स्वाध्याय रहसि स्थित्वा स्वयोग्यं शुद्धिपूर्वकम् ।। (2/170/214-215) कुन्दकुन्द श्रावकाचार में विद्याध्ययन/स्वाध्याय के लिए चतुर्दशी,
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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