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________________ अनेकान्त 59/1-2 के अन्तर्गत सामायिक शिक्षाव्रत में देवपूजा का वर्णन किया है। आचार्य कहते हैं कि सामायिक का अर्थ ही है 'जिनेन्द्र देव की भक्ति पूर्वक पूजा ।' जिनेन्द्र देव की पूजा करने का जो उपदेश है उसे समय कहते हैं और उसमें उसके इच्छुक जनों के जो जो काम बतलाये गये हैं उसे सामायिक कहते हैं 36 आप्तसेवोपदेशः स्यात्समयः समयार्थिनाम् । नियुक्तं तत्र यत्कर्म ततसामायिकमूचिरे ।। ( 1 / 171/426) और साक्षात् जिनेन्द्र देव के अभाव में उनकी प्रतिमा की पूजन करने से भी पुष्य बन्ध होता है - ' आप्तस्यासन्निधानेऽपि पुण्यायाकृति पूजनम् | ( 1/171 /427) देव पूजा के दो रूप बताते हुये आचार्य कहते हैं कि एक तो पुष्पादि में जिन भगवान् की स्थापना करके पूजा की जाती है, दूसरे जिन बिम्बों में जिन भगवान की स्थापना करके पूजा की जाती है। अन्य दूसरे मतों की प्रतिमाओं में जिनेन्द्र देव की स्थापना करके पूजा नहीं करनी चाहिए | ( 1 / 173/446 के बाद) इस प्रकार अतदाकार और तदाकार पूजन के ये दो प्रकार बतलाये। इनमें जो पुष्पादिक में ( अतदाकार) जिनन्द्र देव की स्थापना करके पूजन करते हैं उसकी पूजा विधि बतलाते हुये कहते है कि 'पूजाविधि के ज्ञाताओं को सदा अर्हन्त और सिद्ध को मध्य में, आचार्य को दक्षिण में, उपाध्याय को पश्चिम में, साधु को उत्तर में और पूर्व में सम्यग्दर्शन सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र को क्रम से भोजपत्र पर लकड़ी के पटिये पर, वस्त्र पर, शिलातल पर रेत निर्मित भूमि पर, पृथ्वी पर आकाश में और हृदय में स्थापित करना चाहिए । फिर पूजा करना चाहिए। ( 1 / 173 / 448 ) इसके बाद प्रतिमा में स्थापना करके तदाकार पूजन करने की विधि आचार्य ने बतलायी। आचार्य ने देव पूजा के छह प्रकार बतलाये - (1) प्रस्तावना ( 2 ) पुराकर्म (3) स्थापना (4) सन्निधापन (5) पूजा ( 6 ) पूजा का फल । ( 1 / 180 / 495)
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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