SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 59/1-2 1. नित्य-मह (सदार्पण)- प्रतिदिन अपने घर से जिनालय मे ले जाये गये गंध पुष्प अक्षत आदि के द्वारा जिन भगवान की पूजन करना नित्य-मह कहलाता है। भक्ति से जिन-विम्ब और जिनालय आदि का निर्माण कराना, तथा उनके संरक्षण के लिये ग्राम आदि का राज्य शासन के अनुसार, पंजीकरण करके दान देना भी नित्यमह कहलाता है। अपनी शक्ति के अनुसार, मुनीश्वरों की नित्य आहार आदि दान के साथ जो पूजा की जाती है वह भी नित्यमह कहलाती है। (1/31/27, 8. 29) 2. चतुर्मुख-मह (महामहा, सर्वतोभद्र)- महामुकुट-वद्ध राजाओ के द्वारा की जाने वाली महापूजा को चतुर्मुख-मह आदि नामों से जाना जाता है ।(1/31/30) ___. कल्पद्रुम- मह (कल्पवृक्ष-यज्ञ)- चक्रवर्तियों के द्वारा तुम लोग क्या चाहते हो" इस प्रकार याचक जनों से पूछ-पूछकर जगत की आशा को पूर्ण करने वाला किमिच्छक दान दिया जाता है, वह कल्पद्रुम मह या कल्पवृक्ष-यज्ञ कहलाता है। (1/31/31) ____ 4. आष्टान्हिक-मह- आप्टान्हिका पर्व में सामान्यजनों के द्वारा किया जाने वाला पूजन, आप्टान्हिक-मह कहलाता है। (131/32) ____5. इन्द्रध्वज-मह- उपर्युक्त चार प्रकार की पूजनों के द्वारा इन्द्रों के द्वारा की जाने वाली महान पूजा को इन्द्रध्वज-मह कहते हैं। आज के युग में प्रतिमा की प्रतिष्ठा के निमित्त प्रतिष्ठापार्यों के द्वारा जो पंचकल्याणक पूजा की जाती है, उसे भी इन्द्रध्वज- मह कहा जा सकता है। (1/31/32) ___इनके अलावा भी जो पूजने की जाती हैं, उन सबका समावेश इन पॉच भेदों में हो जाता है। आचार्य जिनसेन इस विधि से युक्त महान् पूजन को षट् आवश्यकों (कर्तव्यों) में इज्या-वृत्ति (देव-पूजन) कहते हैं। (1/31/33, 34) सोमदेवसूरि ने यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन में चार शिक्षाव्रतों
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy